एक घंटा पहलेलेखक: अभिषेक पाण्डेय
क्रिकेट की दुनिया का एक फेमस जोक है- बॉक्स यानी एब्डॉमिनल गार्ड का इस्तेमाल 1874 में ही शुरू हो गया था, जबकि उसके करीब 100 साल बाद हेलमेट का पहली बार इस्तेमाल हुआ। यानी पुरुषों को ये समझने में 100 साल लग गए कि उनका सिर भी जरूरी है।
‘क्रिकेट किट के किस्से’ सीरीज में आज कहानी खिलाड़ियों के शरीर को बचाने वाले जॉकस्ट्रैप, एब्डोमिनल गार्ड और दूसरे प्रोटेक्टिव गियर्स की…
जॉकस्ट्रैप और एब्डॉमिनल गार्ड: खिलाड़ियों के प्राइवेट पार्ट का पहरेदार
जॉकस्ट्रैप खास तरह से डिजाइन अंडरगारमेंट होता है, जो क्रिकेट में खिलाड़ियों के प्राइवेट पार्ट्स की सुरक्षा के लिए पहना जाता है। जॉकस्ट्रैप में एक कप या छोटे प्लास्टिक बॉक्स जैसा स्ट्रक्चर लगाया जाता है, जो एब्डॉमिनल गार्ड कहलाता है। इसे बल्लेबाज के अलावा विकेटकीपर और बैट्समैन के पास खड़े फील्डर्स भी पहनते हैं।
बॉक्स का पहली बार इस्तेमाल कब हुआ इसकी सटीक जानकारी नहीं है। साइमन ह्यूज की किताब ‘एंड गॉड क्रिएटेड क्रिकेट’ के मुताबिक एब्डॉमिनल गार्ड का इस्तेमाल 1860 के दशक में हो रहा था, क्योंकि तब तक ओवरआर्म बॉलिंग यानी हाथ घुमाकर गेंदबाजी को मंजूरी मिल चुकी थी। ओवरआर्म बोलिंग का मतलब था कि गेंदों की स्पीड में तेजी आ चुकी थी, ऐसे में बल्लेबाज सुरक्षा के लिए एब्डॉमिनल गार्ड या AD पहनने लगे थे।
कुछ दशक पहले तक एब्डॉमिनल गार्ड आज के जितने अच्छी क्वॉलिटी के नहीं होते थे। अब क्रिकेटरों के लिए ‘शॉक डॉक्टर’, ‘प्रो इम्पैक्ट’ और ‘कूकाबूरा’ समेत AD के दर्जनों मॉडल मौजूद हैं। आधुनिक AD में वेंटिलेशन की भी व्यवस्था होती है।
महिला प्लेयर्स अपने प्राइवेट पार्ट की सुरक्षा के लिए पेल्विक प्रोटेक्टर का इस्तेमाल करती हैं। पुरुषों के एब्डॉमिनल गार्ड के मुकाबले इसका डिजाइन सपाट होता है।
AD पहनने के बावजूद कई बार तेज गेंद जब प्राइवेट पार्ट्स के आसपास लगती है, तो बल्लेबाज घुटनों पर आ जाते हैं। AD की मदद से बल्लेबाज किसी बड़ी चोट से बच जाता है। 2019 में इंग्लैंड के कप्तान जो रूट के साथ ऐसा हादसा हुआ था।
कई बार खुद टूटा AD, पर बचाई बल्लेबाज की जान
क्रिकेट इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें एब्डॉमिनल गार्ड टूटने के बावजूद बल्लेबाज की जान बच गई…
13 दिसंबर 1974 को पर्थ में खेले गए टेस्ट में इंग्लैंड के ओपनर डेविड लॉयड ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक गुलाबी रंग के एब्डॉमिनल गार्ड का इस्तेमाल कर रहे थे। ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज जेफ थॉमसन की 145 किलोमीटर/घंटे की रफ्तार वाली एक गेंद सीधे लॉयड के प्राइवेट पार्ट वाले एरिया से जा टकराई और उनका AD बीच से टूटकर पैंट से बाहर आ गया। चोट इतनी जोरदार थी कि लॉयड दर्द से कराह उठे और उनका शरीर कांपने लगा। उन्हें फिजियो की मदद से मैदान से बाहर ले जाया गया और बाद में वो ठीक हो गए। AD ने एक तरह से लॉयड की जान बचा ली थी।
2007 में लॉर्ड्स टेस्ट में इंग्लैंड के तेज गेंदबाज स्टीव हर्मिसन की एक तेज गेंद क्रिस गेल के प्राइवेट पार्ट एरिया में लगी और गेल दर्द में वही बैठ गए। उनके साथी बल्लेबाज डेरेन गंगा ने ड्रेसिंग रूम की ओर इशारा करके फिजियो को गेल की मदद के लिए बुलाया।
2013 में वेलिंगटन में न्यूजीलैंड के बल्लेबाज केन विलियम्सन की दक्षिण अफ्रीकी तेज गेंदबाज डेल स्टेन से जोरदार भिड़ंत के दौरान एक तेज गेंद विलियम्सन के AD से टकराई और वो टूट गया। दर्द से परेशान विलियम्सन ने ड्रेसिंग रूम की ओर टूटा हुआ AD दिखाते हुए तुरंत ही एक नया AD मंगाया।
अपनी घातक गेंद से केन विलियम्सन का AD टूटने के बाद दर्द में तड़पते विलियम्सन को देखकर स्टेन ने कहा,’मैं इसके लिए माफी नहीं मागूंगा।’
AD की ये तस्वीर विलियम्सन की उसी टूटी हुई AD की है। स्टेन ने इस AD पर ऑटोग्राफ भी दिया था।
2014 में बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के मेलबर्न में खेले गए टेस्ट के दौरान अपनी 192 रन की शानदार पारी के दौरान ऑस्ट्रेलिया के स्टीव स्मिथ को अपने सेंसटिव एरिया में उमेश यादव की एक तेज गेंद लगी। दर्द से छटपटाते हुए स्मिथ घुटनों पर बैठ गए। कुछ देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद स्मिथ ने ड्रेसिंग रूम की ओर इशारा करते हुए एक नया एब्डो गार्ड मंगाया।
साउथ अफ्रीका के फाफ डु प्लेसिस ने कई बार प्राइवेट पार्ट वाले एरिया में गेंद से हिट किए जाने के बाद 2014 में एक अनोखा प्रयोग किया था। डु प्लेसिस न्यूजीलैंड के खिलाफ एक टेस्ट और एक टी20 और बाद में भारत के खिलाफ एक टेस्ट में तीन AD को एक साथ लपेटकर तैयार AD का कॉम्बो पहनकर खेले थे। डुप्लेसिस ने प्यार से इस AD को ‘द बीस्ट’ नाम दिया था। इस खास AD का वीडियो नीचे देखिए…
आइए, अब क्रिकेट के कुछ अन्य प्रोटेक्टिव गियर्स की कहानी भी जान लेते हैं…
ग्लव्सः बैट्समैन और कीपर के लिए अलग-अलग होते हैं
ग्लव्स का इस्तेमाल विकेटकीपर और बल्लेबाज के हाथों की गेंद से सेफ्टी के लिए होता है। विकेटकीपिंग ग्लव्स का पहली बार इस्तेमाल 1850 में इंग्लैंड में हुआ था। आधुनिक ग्लव्स इस तरह से डिजाइन किए जाते हैं कि इनमें हर अंगुली के आसपास पैडेड एरिया होता है, जो गेंद से सेफ्टी देता है। साथ ही ये वजन में हल्के होते हैं, ताकि बैट को पकड़ने में कोई दिक्कत न हो। ग्लव्स में अंगूठे के पास खास पैडिंग होती है, जो दाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए दाएं अंगूठे के पास और बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए बाएं अंगूठे के पास होती है।
MCC के रूल 27.1 के अनुसार, ग्लव्स का इस्तेमाल फील्डिंग टीम की ओर से विकेटकीपर के अलावा और कोई फील्डर नहीं कर सकता है। किसी और फील्डर के ग्लव्स का इस्तेमाल करने पर पेनल्टी के रूप में 5 रन विपक्षी टीम के खाते में जोड़ दिए जाते हैं।
पैड: लेग गार्ड आने के बाद ही आया LBW
पैड को लेग गार्ड भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल बल्लेबाज और विकेटकीपर गेंद से पैरों की सेफ्टी के लिए करते हैं और कई बार करीबी फील्डर्स भी इसका इस्तेमाल करते हैं। बल्लेबाज और विकेटकीपर के पैड्स अलग-अलग डिजाइन के होते हैं। पैड का पहली बार इस्तेमाल 18वीं सदी के मध्य में इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने किया था। पैड्स का इस्तेमाल शुरू होने के बाद ही बल्लेबाज को आउट देने वाले लेग बिफोर विकेट यानी LBW नियम की शुरुआत हुई, ताकि बल्लेबाज पैड्स का इस्तेमाल गेंद को डिफ्लेक्ट करने के लिए न कर पाएं।
पैड पहनकर क्रिकेट खेलते बल्लेबाज की तस्वीर।
एल्बो गार्ड या आर्म गार्ड: सचिन ने माना- हैंड मूवमेंट पर असर
एल्बो गार्ड का इस्तेमाल बल्लेबाज गेंद से कोहनी या एल्बो और हाथों की सेफ्टी के लिए करते हैं। पिच की असीमित उछाल से बल्लेबाज की कोहनी पर चोट लगने का खतरा रहता है। इसे बैट पकड़ने वाले निचले हाथ में पहना जाता है और इसकी पैडिंग में ग्लव्स की तुलना में ज्यादा कड़े मैटिरियल का इस्तेमाल होता है। एल्बो गार्ड पहनना अनिवार्य नहीं है, बल्कि ये बल्लेबाज की निजी पसंद होती है। कुछ बल्लेबाजों के लिए एल्बो गार्ड पहनने से शॉट खेलने में दिक्कत हो सकती है। इसका इस्तेमाल आधुनिक क्रिकेट यानी कुछ दशक पहले शुरू हुआ।
महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर एल्बो गार्ड का इस्तेमाल करते थे। हालांकि, सचिन ने माना था कि एल्बो गार्ड के इस्तेमाल से हैंड मूवमेंट प्रभावित होता है, जिससे बल्लेबाज कई बार परफेक्ट शॉट खेलने से चूक जाता है। ताबड़तोड़ क्रिकेट के जमाने में ज्यादातर बल्लेबाज केवल बहुत ही उछाल भरी पिचों को छोड़कर एल्बो गार्ड का इस्तेमाल नहीं करते हैं। आधुनिक क्रिकेट में विराट कोहली जैसे बल्लेबाज एल्बो गार्ड की जगह बहुत तेज पिचों पर आर्म पैड का इस्तेमाल करने लगे हैं, जोकि गार्ड की तुलना में करीब आधे साइज का होता है।
आर्म पैड पहनकर खेलते विराट कोहली की तस्वीर। आधुनिक बल्लेबाज एल्बो गार्ड की जगह अधिकतर आर्म गार्ड पहनकर खेलते हैं।
चेस्ट गार्ड: कम लंबाई वाले क्रिकेटर्स के लिए ज्यादा मददगार
चेस्ट गार्ड का इस्तेमाल बल्लेबाज सीने या चेस्ट की गेंदों से सेफ्टी के लिए करते हैं। इसका इस्तेमाल अक्सर कम लंबाई वाले क्रिकेटर करते हैं, क्योंकि उछाल लेती गेंदों के उनके सीने से टकराने का खतरा ज्यादा रहता है। चेस्ट गार्ड भी एल्बो गार्ड जैसे मैटेरियल से बनता है।
चेस्ट गार्ड को दाएं हाथ का बल्लेबाज दाईं तरफ और बाएं हाथ का बल्लेबाज बाईं तरफ पहनता है। हालांकि, एल्बो गार्ड की तरह ही इसे सभी बल्लेबाज नहीं पहनते हैं क्योंकि इसे पहनकर खेलना आसान नहीं होता है। हालांकि, उछाल भरी पिचों पर इसका इस्तेमाल अब अनिवार्य सा हो गया है।
2002 मे इंग्लैंड के हेडिंग्ले टेस्ट की खतरनाक पिच पर सचिन तेंदुलकर की पसलियों में कई बार गेंद लगी। इसके बाद सचिन अगले दिन चेस्ट गार्ड पहनकर उतरे, जो वो आमतौर पर नहीं पहनते थे। सचिन उस मैच में एल्बो गार्ड पहनकर भी खेले थे। इन दोनों गार्ड्स ने उन्हें घातक इंजरी से बचाया था। पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली भी कई मैचों में चेस्ट गार्ड पहनकर खेले थे।
2002 में इंग्लैंड के खिलाफ हेडिंग्ले टेस्ट में सचिन तेंदुलकर चेस्ट गार्ड और एल्बो गार्ड दोनों पहनकर खेले थे।
थाई गार्ड: जांघों को बचाने के लिए इस्तेमाल
थाई गार्ड का इस्तेमाल बल्लेबाज गेंदों से थाई या जांघों की सेफ्टी के लिए करते हैं। थाई गार्ड एक हल्के वजन वाला इक्विपमेंट होता है, जिसे गेंदबाज की तरफ रहने वाली थाई या जांघ के बाहरी हिस्से पर पहना जाता है। थाई गार्ड का इस्तेमाल नीचे रहने वाली गेंदों के जांघों पर लगने से होने वाली किसी भी इंजरी से बचने के लिए किया जाता है। हालांकि सभी बल्लेबाज इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। जांघों पर लगने वाली चोट घातक हो सकती है और बल्लेबाज का मूवमेंट मुश्किल बना देती है। इससे बल्लेबाज पूरे मैच या सीरीज से बाहर हो सकता है। इसलिए थाई गार्ड का इस्तेमाल अहम हो जाता है।
चेस्ट गार्ड और थाई गार्ड पहने हुए एमएस धोनी की तस्वीर।
हेलमेट: क्रिकेट में सबसे ज्यादा जानें बचाने वाला टूल
हेलमेट एक हेड गार्ड होता है, जिसका इस्तेमाल बल्लेबाज, विकेटकीपर और नजदीकी फील्डर्स गेंदों से बचने के लिए करते हैं। क्रिकेट में हेलमेट का पहली बार इस्तेमाल 1970 के दशक में इंग्लिश क्रिकेटर डेनिस एमिस ने किया था। क्रिकेट हेलमेट बनाने वाली पहली कंपनी एल्बियन स्पोर्ट्स थी। एमिस से पहले 1930 के दशक में इंग्लिश क्रिकेटर पैट्सी हेंड्रेन ने तेज गेंदों से बचने के लिए एक थ्री-पैक्ड कैप का इस्तेमाल किया था।
हमने क्रिकेट किट सीरीज के दूसरे एपिसोड में हेलमेट का किस्सा बताया था। पढ़ें हेलमेट का किस्सा
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