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नई दिल्ली16 मिनट पहलेलेखक: दीप्ति मिश्रा
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सोनीपत के हलालपुर में हाल ही में महिला पहलवान निशा दहिया और उसके भाई की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मामले में कोच पवन को गिरफ्तार किया गया। आरोप है कि कोच पवन पहलवान निशा दहिया के साथ छेड़खानी कर रहा था, जिसका महिला खिलाड़ी ने विरोध किया था। विरोध से उत्तेजित होकर कोच ने निशा, उसके भाई और मां पर गोलियां दाग दीं। निशा और उसके भाई की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि मां को अस्पताल में भर्ती कराया गया। कई और लड़कियों ने जूनियर लेवल पर रेसलिंग छोड़ने के पीछे की वजह कोच के गलत व्यवहार को बताया है।
देश में महिला कोच गिनी-चुनी हैं। इसलिए, लड़कियों को कुश्ती के दांव-पेंच पुरुष कोच सिखा रहे हैं। ऐसे में लड़कियों के माता-पिता कोच चुनते वक्त किन बातों पर विशेष ध्यान देते हैं? पुरुष कोच से ट्रेनिंग लेते वक्त लड़कियों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? कोच लड़कियों को दांव-पेंच सिखाते वक्त क्या सावधानियां बरतते हैं? क्या शादीशुदा और उम्र-दराज होना एक कोच को भरोसेमंद बनाता है? ऐसे ही कई सवालों के जवाब टटोलने के लिए वर्ल्ड चैंपियन और अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित दिव्या काकरान और उनके कोच विक्रम कुमार से दैनिक भास्कर डिजिटल की रिपोर्टर दीप्ति मिश्रा की बातचीत…
जिम से पसीने में भीग कर बाहर निकली दिव्या काकरान बताती हैं, ‘मैं साल 2004 से दिल्ली के गुरु प्रेमनाथ अखाड़े में विक्रम सर से कुश्ती के दांव-पेंच सीख रही हूं। मेरा भाई कोच विक्रम से ट्रेनिंग ले रहा था। मेरे मां-पापा उन्हें पहले से जानते थे। इसलिए उन्हें मेरे लिए कोच चुनते वक्त कुछ भी सोचना नहीं पड़ा।’
वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में यूएसए की पहलवान को पटकनी देती दिव्या काकरान।(बाएं)
कभी नहीं खली महिला कोच की कमी
सर्बिया में वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में यूएसए की पहलवान कायला मारानो को धूल चटाकर वापस लौटीं दिव्या बताती हैं, ‘आज मैं जो हूं, उसके पीछे मेरे परिवार के संघर्ष के साथ ही मेरे कोच की कड़ी मेहनत है। पहली बार सात साल की उम्र में अखाड़े में पहुंची थी। तब से लेकर अब तक मेरे कोच विक्रम कुमार ही हैं। अखाड़े में कुछ वक्त के लिए महिला कोच भी आई, लेकिन उस वक्त भी मैं अपनी प्रैक्टिस अपने कोच की देख-रेख में ही कर रही थी। मैं अपनी हर बात उनसे खुलकर बोलती हूं। मेरे मन में कभी ये ख्याल नहीं आया कि महिला कोच होती तो बेहतर होता।
भास्कर वुमन की टीम जब गुरु प्रेमनाथ अखाड़े में पहुंची तो जूनियर लेवल के करीब 20 खिलाड़ी मैट पर प्रैक्टिस कर रहे थे। इनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल थे। मैट के एक ओर सीनियर प्लेयर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। दूसरी ओर लड़कियों के अभिभावक बच्चों को प्रैक्टिस करते हुए देख रहे थे। प्रैक्टिस कर रहे खिलाड़ियों के बीच खड़े कोच विक्रम कुमार हर एक खिलाड़ी के दांव पेच पर बारीकी से नजर बनाए हुए थे। गलती करने वाले खिलाड़ी को रोक उसे सही दांव लगाना सिखाते। फिर भी गलत करने पर डांट भी लगा देते।
मैट पर सिर्फ खिलाड़ी होता है
कोच विक्रम ने बताया कि पहले वे खुद कुश्ती लड़ते थे। साल 2000 के बाद से खिलाड़ियों को पहलवानी सिखाने लगे, जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल होते हैं। कुश्ती एक ऐसा खेल है, जहां बॉडी टू बॉडी टच होता है। उनका कहना है कि मैट पर जब खिलाड़ी आता है, तब वो सिर्फ खिलाड़ी होता है, उसका पूरा ध्यान अपने गेम को मजबूत करने पर होता है, उस वक्त लड़के या लड़की वाला ख्याल मन में नहीं आता है। लड़कियों का गेम मजबूत करने के लिए उनका मुकाबला लड़कों के साथ भी कराया जाता है।
लड़कियों को ट्रेनिंग देते वक्त कौन सी मुश्किलें आती हैं? इसके जवाब में कोच विक्रम बताते हैं, हां सावधानी बरतता हूं, लेकिन ऐसी कोई दिक्कत नहीं आती है। हमारे लिए यहां आने वाले लड़के और लड़की खिलाड़ी हैं। अखाड़े में प्रैक्टिस के लिए बात करने के दौरान लड़कियों के माता-पिता मुझसे कुछ नहीं पूछते हैं, फिर भी मैं उनसे अखाड़े में बैठकर प्रैक्टिस देखने को कहता हूं। हालांकि, मैं इस बात को नकार नहीं रहा हूं कि महिला खिलाड़ियों के साथ बदसलूकी होती है।
गुरु प्रेमनाथ अखाड़े में खिलाड़ियों को दांव-पेंच सिखाते कोच विक्रम।
लंबे समय से महिला कोच की मांग, साई नहीं दे रही ध्यान
कोच विक्रम बताते हैं कि यह अखाड़ा साई ने एडॉप्ट कर लिया है। साई किसी भी अखाड़े को एडॉप्ट करने के बाद मैट, जिम और महिला कोच की व्यवस्था करती है। मैट फट चुकी है। महिला कोच का ट्रांसफर कर दिया। हमारे यहां लड़कियों की संख्या अच्छी है। इसे देखते हुए साई से कई बार महिला कोच की मांग कर चुका हूं, लेकिन अब तक इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हालांकि, देश को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दे चुके कोच विक्रम कुमार को इस बात का मलाल है कि अब तक सरकार ने उन्हें न कोई मदद दी है और न सम्मान।
पहलवान दीप्ति राजपूत।
तीन दिन भूखे रहने के बाद मिली पहलवानी की परमिशन
एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुकी मेरठ की पहलवान दीप्ति राजपूत का कहना है कि बचपन से मेरा सपना विदेश जाना था। एक बार मेरठ में एक कोच अपने खिलाड़ियों के साथ आए। उन खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करते देखकर मैंने भी रेसलर बनने का मन बना लिया। हालांकि, यह राह आसान नहीं थी। मां-पापा ने मना कर दिया। कहा कि शरीर खराब हो जाएगा। फिर मैंने तीन दिन तक खाना नहीं खाया। जिद पकड़ कर बैठ गई, तब जाकर परमिशन मिली। मैंने कोच जबर सिंह से ट्रेनिंग ली। शुरुआत में पापा प्रैक्टिस के दौरान साथ रहते थे, लेकिन बाद में उन्होंने जाना बंद कर दिया। दीप्ति अभी गाजियाबाद के महामाया स्पोर्ट स्टेडियम में ट्रेनिंग ले रही हैं। बता दें कि दीप्ति स्कूल से लेकर नेशनल तक करीब 16 मेडल अपने नाम कर चुकी हूं।
मानविका गौतम।
प्रैक्टिस पर साथ जाती थीं मां : मानविका
जूनियर रेसलर मानविका गौतम कहती हैं कि स्कूल की ओर से स्टेडियम में कबड्डी खेलने गई थी। वहां मैंने खिलाड़ियों को कुश्ती की प्रैक्टिस करते देखा। उसी पल फैसला ले लिया कि मैं भी पहलवानी करूंगी। घर आकर मां-पापा को बताया। इसके बाद सवाल यह खड़ा हुआ कि आखिर ट्रेनिंग कहां कराई जाए। फिलहाल, कोच विक्रम से ट्रेनिंग ले रही मानविका बताती हैं कि ग्रेटर नोएडा के मलकपुर स्टेडियम में कोच अंकित राजपूत से कुश्ती के दांव-पेंच सीखने लगीं। मां कई दिन तक प्रैक्टिस पर साथ जाती थीं। कोच से खूब सारे सवाल जवाब कर तसल्ली की। तब जाकर बेफिक्र हुईं। महिला कोच की जरूरत पर 17 वर्षीय मानविका कहती हैं कि पुरुष कोच अच्छे से सिखाते हैं। फिर भी मुझे लगता है कि महिला कोच होनी चाहिए ताकि लड़कियां अपनी सारी बातें खुलकर बता सकें। बता दें कि मानविका अब तक स्टेट लेवल पर गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज मेडल जीत चुकी हैं।
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