- Hindi News
- Local
- Mp
- Bhopal
- Guna
- Wushu Started Playing In MP With The Inspiration Of Father, If There Was No Mat Then Practice On The Ground; Coach Bears Tournament Expenses
गुना2 घंटे पहलेलेखक: आशीष रघुवंशी
रूस और यूक्रेन में युद्ध छिड़ हुआ है। इस बीच मध्यप्रदेश के एक लड़के ने रूस की धरती पर भारत का झंडा लहरा दिया। खार्किव बॉर्डर से 740 किलोमीटर दूर रूस की राजधानी मॉस्को में वुशु गेम (चीनी मार्शल आर्ट) में भारत का नेतृत्व कर गोल्ड मेडल जीता। 22 साल के इस गोल्डन बॉय का इंटरनेशनल लेवल पर ये तीसरा गोल्ड मेडल है। वे अब तक 12 मेडल हासिल कर चुके हैं। अब उनकी नजर एशियाड गेम्स पर है। ऑटो ड्राइवर पिता के बेटे का इंटरनेशनल खिलाड़ी बनने तक का सफर आसान नहीं रहा। न सुविधाएं थीं और न पैसे। कठिन संघर्ष के बाद उन्होंने यह मुकाम हासिल किया। जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी…
गुना के रोहित जाधव। भार्गव कॉलोनी में रहते हैं। उनकी बचपन से ही खेल में रुचि थी। पिता सुनील जाधव सेना में जाना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों के कारण उनका सपना अधूरा रह गया। यह सपना उन्होंने बेटे में जीया। घर चलाने के लिए ऑटो चलाने लगे। बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया। बेटा रोहित जब 8वीं में था, तब स्कूल में वुशू सिखाने के लिए कोच आए। यही उसकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट रहा। रोहित ने भी वुशू खेलना शुरू किया।
कोच को समझ आ गई प्रतिभा
वुशू में रोहित की प्रतिभा कोच धर्मेंद्र मांझी को समझ आ गई। इसके बाद उन्होंने उसे ज्यादा ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। जिला स्तर और प्रदेश स्तर के टूर्नामेंट में भेजा। वहां गोल्ड मेडल जीता, तो हौसला बढ़ता गया।
रूस में अपने प्रदर्शन के दौरान रोहित।
गरीबी आड़े आई, लेकिन रुके नहीं
जिला स्तर पर खेलने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे। वुशू में उपयोग होने वाले न तो वेपन थे और न मैट थी। इसके बाद उन्होंने जमीन पर ही खेलना शुरू कर दिया। वहीं से ट्रेनिंग शुरू हो गई। पिता बमुश्किल घर खर्च ही जुटा पाते हैं। ऐसे में संसाधन जुटाना चैलेंज था। जिले से बाहर टूर्नामेंट में जाने के लिए पैसे नहीं होते थे। एक बार टूर्नामेंट में जाने के लिए 5 से 6 हजार रुपए खर्च होते थे। कई बार कोच ने खुद पैसे देकर उन्हें टूर्नामेंट में भेजा।
कोच ने दिए हिम्मत के पंख
ट्रेनिंग के लिए कोच ने रोहित को भोपाल ट्रेनिंग सेंटर में भिजवाया। वहां टेस्ट के बाद सिलेक्शन हो गया। 12 वर्ष की उम्र में वह जबलपुर ट्रेनिंग सेंटर पहुंच गए। वहां से फिर भोपाल पहुंचे। शहर से शुरू हुआ उनका सफर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुका है। स्पोर्ट्स कोटे से चार महीने पहले उनका सिलेक्शन असम राइफल्स में हुआ।
मॉस्को में हुए गेम के बाद नंबर वन पोजीशन पर खड़े रोहित जाधव।
मॉस्को में राष्ट्रगान बजने वाले पल ने उत्साह से भर दिया
रोहित ने बताया कि ओलिंपिक में अभी यह खेल शामिल नहीं है। एशियाड गेम्स में मेडल लाना उनका सपना है। मॉस्को में कई देशों ने हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि जब प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत के बाद राष्ट्रगान बजा, वह उत्साहित करने वाला पल था। अब एशियाड गेम्स की ट्रेनिंग के लिए वह नागालैंड जाएंगे।
बेटा कर रहा पिता का सपना पूरा
रोहित के पिता सुनील जाधव ने बताया कि उनका बचपन से सपना था कि वह सेना में जाएं, लेकिन परिवार की स्थिति और जिम्मेदारियों के कारण वह पूरा नहीं हो सका। उन्होंने बेटे के लिए भी सेना में जाने का सपना देखा। सुबह 5 बजे से वह बेटे को जगाते। तैयार करते और स्टेडियम लेकर जाते। हर जगह वह उसके साथ रहे। खुद का काम-धंधा भी कम कर दिया। जहां भी बेटे का टूर्नामेंट होता, वह खुद उसके साथ जाते।
गुरुवार को गुना में रोहित का ढोल-धमाके के साथ स्वागत कर जुलूस भी निकाला।
बेटे ने पिता के दोनों सपने कर दिए पूरे
रोहित के पिता ने बताया कि बेटे का खेल लगातार निखर रहा था। 12 वर्ष की उम्र में ही उसे घर छोड़ना पड़ा। वह खुद उसे जबलपुर ट्रेनिंग सेंटर छोड़ने गए। हालांकि, इतनी सी उम्र में बेटा अकेला नहीं रह सका। पिता ने किसी तरह समझाया और छोड़कर आए। जितने भी टूर्नामेंट में बेटा गया, पिता उसके साथ रहे। अब बेटे का चयन सेना में भी हो गया है। पिता के दोनों सपने पूरे हो गए।
तीन बार इंटरनेशनल गोल्ड जीते
इससे पहले रोहित ने 2017 में साउथ कोरिया में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। 2018 दिल्ली एशियाई चैम्पियनशिप में दो गोल्ड जीते। स्टेट और नेशनल मिलाकर कुल 12 मेडल वह जीत चुके हैं।
कोच बोले- सुविधाएं मुहैया कराए सरकार
रोहित के कोच धर्मेंद्र मांझी ने बताया कि जिले में इस खेल में रुचि कम है। उनके पास बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए वेपन और मैट तक नहीं हैं। रोहित को उन्होंने जमीन पर ही ट्रेनिंग दी है। वह खुद रेलवे में नौकरी करते हैं। बचे समय में बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं। बच्चों से ट्रेनिंग के लिए वह फीस नहीं लेते। सरकार इस ओर थोड़ा ध्यान दे। जरूरी सामान उपलब्ध कराए, तो जिले में प्रतिभाएं निखरकर सामने आ सकती हैं।
क्या है वुशू खेल
वुशू एक चीनी मार्शल आर्ट खेल है। लड़ाई गतिविधियों के साथ आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के अभ्यास इसमें किए जाते हैं। इसे दो वर्गों ताओलो और संसौ में बांटा गया है। ताओलो में मार्शल आर्ट पैटर्न, एक्रोबैटिक मूवमेंट्स और तकनीकी कला शामिल है।
For all the latest Sports News Click Here
For the latest news and updates, follow us on Google News.