अस्थियां विसर्जन के समय छलक पड़े आंसू: फादर्स डे वाले दिन जीव मिल्खा ने पिता उड़न-सिख मिल्खा सिंह की अस्थियों को कीरतपुर साहिब में सतलज नदी में विसर्जित किए
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चंडीगढ़एक मिनट पहले
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रोपड़ जिले के कीरतपुर साहिब में आज मिल्खा सिंह की अस्थियों को प्रवाहित कर दिया गया। यहां पर कई सिख गुरुओं और राजनेताओं की अस्थियां प्रवाहित की जाती रही है। फाइल फोटो
आज फादर्स डे वाले दिन जहां एक बेटा अपने पिता को गले से लगाता है लेकिन आज एक महान पिता उड़नसिख मिल्खा सिंह को गोल्फर जीव मिल्खा सिंह को अलविदा कहना पड़ा। जीव मिल्खा सिंह और परिवार के अन्य सदस्यों ने आज अपने पिता की अस्थियों को सतलज नदी में प्रवाहित किया।
उड़नसिख मिल्खा सिंह की अस्थियों को प्रवाहित करते परिवार के सदस्य।
गोल्फर जीव मिल्खा सिंह ने अपने पिता उड़नसिख मिल्खा सिंह की अस्थियों को श्री कीरतपुर साहिब में पातालपुरी में पहुंच कर पूरे धार्मिक रीति से विसर्जित किए। देश के महान स्प्रिंटर मिल्खा सिंह की दो दिन पहले उनकी मौत कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद इलाज के दौरान पीजीआई में हो गई थी। शनिवार को सेक्टर-25 के श्मशानघाट में मिल्खा सिंह को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था। इस मौके कई गणमान्य लोग पहुंचे थे।
आज सुबह जीव मिल्खा सिंह सहित परिवार के सदस्यों ने सुबह श्मशानघाट में पहुंच कर मिल्खा सिंह की अस्थियों को चुन कर उसे एक बर्तन में रख कर श्री कीरतपुर साहिब स्थित पातालपुरी में ले जाया गया । वहां पर पूरे धार्मिक कार्यक्रम के बाद अस्थियों को नदी में विसर्जित किया गया। इस मौके जीव मिल्खा सिंह और उनकी बहनों सहित अन्य सदस्य भी मौजूद थे।
इससे पहले इसी स्थान पर कई प्रमुख लोगों की अस्थियां प्रभावित की गई
पंजाब में कीरतपुर साहिब स्थित पातालपुरी में कई राजनेताओं और प्रमुख लोगाें की अस्थियों को प्रवाहित किया जा चुका है।
पातालपुरी में कई सिख गुरुओं की अस्थियां प्रवाहित की गई
पंजाब के रोपड़ जिले में स्थित कीरतपुर साहिब में पातालपुरी सबसे प्रसिद्ध स्थान है। इस स्थान पर सिख धर्म गुरुओं की अस्थियों को प्रवाहित किया जाता रहा है। इस जगह की स्थापना 1627 में गुरू हरगोबिंद सिंह जी ने किया था। साथ ही यह गुरू हर राय और गुरू हरकृष्ण का जन्म स्थान भी है। 9वें गुरू तेग बहादुर सिंह जी को मुगल बादशाह औरंगजेब ने दिल्ली में शहीद कर दिया था। गुरू जी के सर को इस स्थान पर लाया गया था। यहां पर बाबनगढ़ नाम से एक गुरुद्वारा भी बनवाया गया था। साथ ही एक मुस्लिम संत पीर बुड्ढन शाह (पौराणिक कथाओं के अनुसार जिनकी उम्र 800 साल थी) का संबंध भी इस स्थान से है। गुरुद्वारा के अलावा कीरतपुर साहिब में कई मंदिर और दरगाह भी हैं।
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