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ओलिंपिक की कसर कॉमनवेल्थ में पूरी की: दीपक पूनिया बोले- टोक्यो में मेडल न जीतने पर मायूस थे, देश को समर्पित किया पदक

बहादुरगढ़4 घंटे पहले

इंग्लैंड में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले झज्जर जिले के गांव छारा के रहने वाले रेसलर दीपक पूनिया ने अपने इस मेडल को देश को समर्पित किया। साथ ही देशवासियों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि टोक्यो ओलिंपिक में मेडल नहीं जीतने पर मायूस जरूर हुआ था, लेकिन अब एक कदम आगे बढ़कर हर विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में ऐसा ही प्रदर्शन करने का सपना है।

शुक्रवार का दिन 86KG फ्रीस्टाइल कुश्ती में दीपक पूनिया के नाम रहा। सबसे पहले दीपक ने शेकू कससेगबाबा को 10-0 से मात दी और फिर सेमीफाइनल में कनाडा के मुरे को 3-0 से पटकनी दी। इसके बाद उनका फाइनल मुकाबला पाकिस्तान के रेसर मोहम्मद इनाम बट्‌ट से हुआ और उन्होंने एक तरफा मैच में इनाम बट्‌ट को 3-0 से हरा दिया। दीपक का मुकाबला पाकिस्तान के रेसलर के साथ होने की वजह से यह कुश्ती और भी ज्यादा रोचक हो गई थी।

दीपक के मेडल जीतने पर गांव छारा में लोग खुशी मनाते हुए।

दीपक के मेडल जीतने पर गांव छारा में लोग खुशी मनाते हुए।

दीपक ने पाकिस्तान के रेसलर के साथ मुकाबला होने पर कहा कि उनका एक बार भी जोश कम नहीं हुआ, क्योंकि उनके साथ देशभर के लोगों की दुआ और टोक्यो ओलिंपिक के बाद की गई जी तोड़ मेहनत थी और इसी के बलबूते पाकिस्तानी रेसलर को मात दी। बता दें कि, टोक्यो ओलिंपिक में सैन मारिनो के पहलवान माइलेस नाजिम अमीन ने सेमीफाइनल में दीपक पूनिया को हरा दिया था। मेडल नहीं जीतने पर वह काफी मायूस हो गए थे। हालांकि, हार नहीं मानी और फिर उससे ज्यादा कड़ी मेहनत की, जिसका परिणाम यह रहा कि आज वह देश की झोली में गोल्ड मेडल डालने में कामयाब रहे।

गांव में सीखे दांव-पेंच

दीपक के पिता सुभाष पुनिया पेशे से डेयरी संचालक है। सुभाष पूनिया ने बताया कि दीपक ने शुरुआती दांव-पेंच गांव के कुश्ती अखाड़े में ही कोच वीरेंद्र कुमार से सीखे। 5 साल की उम्र में ही अखाड़े जाना शुरू कर दिया था। जब वे स्टेट और नेशनल में मेडल जीतने लगे तो अंतरराष्ट्रीय पहलवान और ओलिंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार उन्हें छत्रसाल स्टेडियम में ले गए। वहां पर सुशील और महाबली सतपाल ने उनका मार्गदर्शन किया। उन्होंने ही दीपक के रहने की व्यवस्था स्टेडियम में की।

पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में बने चैंपियन

दीपक अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में ही चैंपियन बने। 2016 में कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहली बार देश का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने इस चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। वे महज 17 साल की उम्र में ही विश्व चैंपियन बने। 2019 में अपनी पहली सीनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में 86 किग्रा वर्ग में सिल्वर मेडल जीता। यहां से ही उन्हें ओलिंपिक कुश्ती टीम का टिकट मिला।

ओलिंपिक में मेडल से चूके

पिछले साल टोक्यो में हुए ओलिंपिक गेम में दीपक पूनिया से भी मेडल जीतने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन आखिरी वक्त में वह चूक गए। जिसके बाद वह काफी मायूस हुए। गांव लौटने के बाद दीपक ने एक बार फिर जबरदस्त मेहनत की और अब मेडल जीत लिया। दीपक पूनिया का कहना है कि अगला टारगेट उनका अब पेरिस में होने वाले ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतना है।

सेना में सूबेदार हैं दीपक पूनिया

दीपक पूनिया 2018 से सेना में सूबेदार हैं। पिता सुभाष ने बताया कि बेटे की नौकरी लग जाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। दीपक के कहने पर उन्होंने डेयरी का काम बंद कर दिया है। दीपक तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। इनसे बड़ी दो बहनें हैं और दोनों की शादी हो चुकी है। दीपक की मां का निधन 2 साल पहले हो गया था।

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