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क्या टीम इंडिया के अच्छे दिन बीत गए: गांगुली ने लड़ना और धोनी ने जीतना सिखाया; कोहली की कप्तानी में टेस्ट में बेस्ट बनने के बाद आई गिरावट

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नई दिल्ली4 मिनट पहले

पिछले साल टी-20 वर्ल्ड कप से शुरू हुआ टीम इंडिया का मुश्किल दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय टीम पहली बार इस मेगा इवेंट में पाकिस्तान से हारी। फिर सेमीफाइनल में भी पहुंचने में नाकाम रही। इसके बाद कप्तानी विवाद की शुरुआत हुई और साउथ अफ्रीका दौरे पर टेस्ट और वनडे दोनों सीरीज में हार मिली। वह भी तब जब हमारा सामना अब तक की सबसे कमजोर साउथ अफ्रीकी टीम से हुआ था।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय टीम का गोल्डन एरा खत्म हो गया है? वह एरा जिसने भारतीय क्रिकेट के तीन सबसे शानदार कप्तान सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली का दौर देखा।

गांगुली की कप्तानी में टीम इंडिया ने दुनिया से आंख मिलाकर खेलना सीखा। धोनी ने टीम को व्हाइट बॉल क्रिकेट में दो बार वर्ल्ड चैंपियन बनाया। वहीं, विराट की कप्तानी में टीम रेड बॉल क्रिकेट में सबसे आगे निकल गई।

चलिए जानते हैं कि इन कप्तानों की अगुवाई में भारत ने क्या हासिल किया और अब आगे का सफर कैसा हो सकता है।

गांगुली ने मैच फिक्सिंग के दौर से बाहर निकाला
दिसंबर 2000 में मोहम्मद अजहरुद्दीन पर मैच फिक्सिंग मामले में आजीवन प्रतिबंध लगाया गया था। अजय जडेजा भी पांच साल के लिए बैन हुए। सचिन तेंदुलकर ने कप्तानी छोड़ने का फैसला कर लिया। इसके बाद 28 साल की उम्र में अप्रत्याशित रूप से सौरव गांगुली को टीम का कप्तान बनाया गया।

गांगुली की अगुवाई में भारत ने सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया का विजयी रथ रोका। लगातार 16 टेस्ट में जीत हासिल करने के बाद कंगारू टीम 2001 में कोलकाता के ईडन गार्डेंस में भारत से हारी। भारत ने चेन्नई टेस्ट जीत सीरीज पर भी कब्जा कर लिया। 2002 में इंग्लैंड में नेटवेस्ट ट्रॉफी में जीत मिली। भारतीय टीम 2003 के वर्ल्ड कप के फाइनल तक पहुंची। 20 साल बाद भारत ने वर्ल्ड कप का खिताबी मुकाबला खेला। फिर 2004 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज ड्रॉ कराई और पाकिस्तान में पहली बार कोई टेस्ट मैच और फिर टेस्ट सीरीज जीतने में सफलता हासिल की।

धोनी की कप्तानी में जीते 3 ICC इवेंट
सौरव गांगुली की अगुवाई में भारतीय टीम फाइटर तो बनी लेकिन वर्ल्ड चैंपियन नहीं बन पाई। इस कमी को पूरा किया महेंद्र सिंह धोनी ने। धोनी के कैप्टन बनाए जाने के बाद भारतीय क्रिकेट की तस्वीर ही बदल गई। 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप के लिए धोनी को कप्तान बनाने का दांव खेल गया और सिलेक्टर्स द्वारा फेंका गया पासा काम कर गया।

धोनी की युवा ब्रिगेड़ ने फाइनल में पाकिस्तान को मात देकर इतिहास रच दिया। इसके बाद महेंद्र सिंह धोनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। टी-20 वर्ल्ड कप में मिली सफलता के बाद उनको वनडे की कप्तानी भी मिल गई और सालभर के अंदर टेस्ट की कमान उनको सौंप दी गई। धोनी के कार्यकाल में भारत ने 2009 में पहली बार टेस्ट रैंकिंग में पहला स्थान हासिल किया। वह धोनी ही थे जिनकी कप्तानी में भारतीय टीम 2011 में 28 सालों के लंबे सूखे को समाप्त कर वनडे वर्ल्ड कप पर कब्जा जमाया।

2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के साथ एमएस दुनिया के पहले ऐसे कप्तान बने जिन्होंने ICC की तीनों ट्रॉफी जीती हो। महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी कैप्टेंसी में कई खिलाड़ियों के करियर बनाए। अपनी लीडरशिप में उन्होंने रोहित शर्मा, रवींद्र जडेजा और विराट कोहली जैसे सुपरस्टार तैयार किए।

कोहली ने हमें टेस्ट में बेस्ट बनाया
एमएस धोनी के कप्तानी छोड़ने के बाद 2015 में विराट कोहली को टेस्ट का लीडर बनाया गया था। उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने शानदार खेल दिखाया। विराट के बल्ले ने भी जमकर रनों की बारिश की। टेस्ट कैप्टन के रूप में कोहली ने पहला मैच 2014 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड में खेला था और मैच की दोनों पारियों में शतक लगाए थे। किंग कोहली की कप्तानी में भारत ने देश के साथ-साथ विदेशों में भी सफलता के झंड़े गाड़े।

विराट की अगुआई में भारतीय टीम टेस्ट क्रिकेट में 42 महीनों तक टेस्ट रैंकिंग में पहले पायदान पर रही। कोहली की कप्तानी में टीम अक्टूबर 2016 में पहली बार टेस्ट में नंबर-1 बनी थी और 2020 मार्च तक इस पायदान पर बरकरार रही। लगातार 42 महीनों तक टेस्ट क्रिकेट में राज करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है।

2018-19 में भारत ने विराट की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया को उसकी सरजमीं पर 2-1 से हराकर टेस्ट सीरीज जीती थी। इसके साथ ही कोहली एशिया पहले ऐसे कप्तान बन गए थे, जिन्होंने कंगारूओं को उन्हीं की धरती पर टेस्ट सीरीज में हराया। इस सीरीज में बतौर कप्तान कोहली ने 7 पारियों में 40.29 की औसत के साथ 282 रन बनाए थे। कोहली टीम इंडिया के सबसे सफल टेस्ट कप्तान रहे।

68 मैचों में टीम की कमान संभालते हुए उन्होंने देश को 40 मैच जिताए। कोहली का जीत प्रतिशत 58.82 का रहा। खास बात तो ये रही की विराट ने 40 से में 16 मुकाबले विदेशी सरजमीं पर जीते। लेकिन साउथ अफ्रीका दौरे पर यह सिलसिला थम गया।

साउथ अफ्रीका में हार के बाद विराट ने टेस्ट की कप्तानी छोड़ दी। टी-20 की कप्तानी वे पहले ही छोड़ चुके थे और BCCI ने उनसे वनडे की लीडरशिप छीन ली थी।

भारतीय टीम तीनों फॉर्मेट में अचानक आसमान से जमीन पर आ गिरी है। टी-20 फॉर्मेट में वर्ल्ड कप का प्रदर्शन और टेस्ट/वनडे में साउथ अफ्रीका दौरे के नतीजे हमारे सामने हैं। अब भारतीय क्रिकेट रोहित शर्मा के दौर में एंटर करने वाली है। वे वनडे और टी-20 के कप्तान बन चुके हैं। माना जा रहा है कि टेस्ट की कमान भी फिलहाल उन्हें ही मिलेगी।

35 साल के रोहित के पास काबिलियत की कोई कमी नहीं है। वे बतौर कप्तान 5 IPL खिताब जीत चुके हैं। विराट की गैरहाजिरी में जब भी भारत की कप्तानी मिली तो भी सफल रहे। निदाहास ट्रॉफी और एशिया कप खिताब इसकी बानगी हैं।

रोहित के सामने पहला चैलेंज टीम को एकजुट रखना है। इसके बाद उनकी कामयाबी दो प्रमुख फैक्टर पर डिपेंड करेगी। 1. वे खुद को कितना फिट रख पाते हैं और 2. उन्हें विराट कोहली का कितना साथ मिल पाता है। भारतीय क्रिकेट टीम के लिए अगले 18 महीने काफी चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं। अक्टूबर में फिर से टी-20 वर्ल्ड कप है। अगले साल फरवरी-मार्च में घरेलू जमीन पर वनडे वर्ल्ड कप और फिर ICC टेस्ट चैंपियनशिप की चुनौती भी है। इन्हीं तीन चैंपियनशिप में प्रदर्शन के आधार पर तय होगा कि भारत क्रिकेट का गोल्डन एरा विराट के कप्तानी छोड़ने के साथ खत्म हो गया या उसके बाद भी जारी रहा। हमें फिलहाल इंतजार करना होगा। वो कहते हैं न Wait & Watch.

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