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खिलाड़ियों के घरों से लाइव रिपोर्ट: मां की बाली का लॉकेट बनवा गले में पहनते हैं सुमित, कोरोना को हरा उतरे थे सुरेंद्र

सोनीपत / गन्नाैरएक घंटा पहले

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गन्नौर. सुमित का मैच देखते पिता, भाई व बच्चे।

  • आखिरी मिनट तक टेंशन में रहे हॉकी खिलाड़ियों के परिजन, मैच जीतते ही झूमने लगे, बांटी मिठाइयां
  • माहौल: अभी से स्वागत की तैयारी में लगे परिजन, गाजे-बाजे के साथ एयपोर्ट से खिलाड़ियों को लाएंगे गांव

भारत ने हॉकी में नया इतिहास रचते हुए 41 साल बाद कांस्य पदक जीत लिया है। इस जीत में सोनीपत के सुमित कुमार व कुरुक्षेत्र के सुरेन्द्र पलड ने अहम भूमिका निभाई। जहां सुमित ने अपने मिड फिल्ड की भूमिका में टीम को कई मौकों पर गोल खाने से भी बचाया तो गोल के मौके भी बनाए। वहीं सुरेन्द्र रक्षा पंक्ति में एक बार फिर टीम के लिए मजबूत कड़ी बनकर उभरे। मेडल जीतने के बाद दोनों खिलाड़ियों ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उनके लिए कांस्य मेडल सबसे खुशहाली का अवसर है। इन पलों को बार-बार जीने को मन करता है।

सुमित को मेडल पहनते देख परिजन हुए गदगद

सुमित के शानदार खेल से कुराड़ के लोग गदगद हैं। हर कोई सुमित और पूरी टीम को बधाई दे रहा है। तिरंगा लहराया गया। मिठाई बांटी गई। जर्मनी के खिलाफ मैच जीतते ही गांव में ढोल बजने से लेकर लड्डू बांटे और सुमित के घरवालों को बधाई देने वालों का तांता लग रहा। पिता प्रताप सिंह ने कहा कि संघर्ष से तपकर सुमित आगे बढ़ा है, गर्व की बात है कि उसने देश का नाम चमकाया। बड़े भाई जय सिंह, अमित चौहान ने बताया कि सुमित का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया जाएगा। जिसकी तैयारियां अभी से शुरू हो चुकी है। भाई को एयरपोर्ट से गाजे-बाजे के साथ लेकर आएंगे।

पिता ने नहीं देखा मैच, जीतने के बाद जमकर नाचे

कुरुक्षेत्र, टोक्यो में गुरुवार सुबह सात बजे कांस्य पदक के लिए हुए पुरुष हॉकी के हाई टेंशन मुकाबले को सेक्टर आठ निवासी अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी सुरेंद्र पालड़ के माता-पिता ने नहीं देखा। मां नीलम पूरे मैच के दौरान जहां पड़ोसियों के घर में या फिर गली में बैठी रही। वहीं पिता मलखान सिंह भी घर से बाहर ही रहे। इस दौरान दोनों टेंशन में रहे। अंदर कमरे में टीवी पर सुरेंद्र के भाई नरेंद्र कुमार, भाभी कुसुम और भतीजी मैच देखती रही। जैसे ही टीम के जीतने की खबर आई तो माता-पिता दोनों झूम उठे। इसके बाद दिनभर बधाइयों का सिलसिला चला। ढोल की थाप पर मां-बाप व परिजनों ने डांस कर खुशी जताई।

जीत पर यह बोले म्हारे चैंपियन-

मेरी मां ही मेरी गुडलक, यह पदक उन्हीं को है समर्पित

जीत के बाद सुमित कुमार ने कहा कहा कि यूं तो यह मेडल देश का है, लेकिन अगर यह मेरे गले में सज सका है तो इसके पीछे मेरी मां और पिता का संघर्ष है। उन्होंने कहा कि पिछले साल मां का निधन होने से आधी दुनिया खत्म सी हो गई थी। मेरे और मां के बीच लगाव को देखते हुए भाई ने मां के कानों की बाली का तुड़वा कर उससे लॉकेट बनवाकर दिया, जो गले में पहनता हूं। आज भी मुझे हर पल हिम्मत देने वाली मेरी मां है। भारत पदक विजेता बन सका, इसके पीछे बड़ी वजह हमेशा खुद को सकारात्मक रखना था। परिजनों व कोचिंग स्टाफ ने साथ दिया।

ओलिंपिक मेडल के पीछे है मेरा डेढ़ साल का कड़ा संघर्ष-

सुरेंद्र ने कहा कि ओलिंपिक मेडलिस्ट बनने की खुशी गजब की है, लेकिन यहां तक पहुंचना कभी भी सहज नहीं रहा। खासकर कोरोना के माहौल मे तैयारी। खुद कोरोना संक्रमित हुआ। अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, लेकिन यह ओलिंपिक खेलकर मेडल जीतने का जुनून ही था जो जल्द से जल्द ग्राउंड मे पहुंचने के लिए प्रेरित करता था। टीम ने शानदार हॉकी खेली। हालांकि गोल्ड का सपना टूटने से सभी मायूस थे, लेकिन टीम की बाउंडिग इतनी बेहतर थी। ओलिंपिक मेडल पहनना मेरी जिंदगी का सबसे यादगार पल है। इस क्षण मुझे अपने परिजन याद आए।

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