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जिद की अनूठी दास्तां: 177 मेडल जीतने के बाद लगी चोट आधे शरीर में नहीं रही जान, जुुनून ऐसा नए स्पोर्ट्स में फिर उतरे मैदान में

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  • After Winning 177 Medals, The Injury Did Not Remain In Half The Body, The Passion Was Like This Again In The New Sports.

इंदौर32 मिनट पहलेलेखक: विकास मिश्रा

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उंगलियों में जान नहीं, रैकेट हाथ में बांध कर संभालते हैं मैदान।

जिमनास्टिक में 60 गोल्ड सहित 177 मेडल जीतने के बाद प्रैक्टिस के दौरान रीढ़ की हड्‌डी में ऐसी चोट लगी कि 13 महीने अस्पताल में रहना पड़ा। गर्दन के नीचे के शरीर में जैसे जान ही नहीं रही। लगा, मानो सब खत्म हो गया पर हौसलों में दम हो और जीत का जुनून हो तो कोई कैसे हार सकता है। फिर हिम्मत जुटाई और नए स्पोर्ट्स के साथ कोर्ट में लौटे।

ये कहानी है, सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट मयंक श्रीवास्तव की। मयंक खेल प्रशाल में राष्ट्रीय पैरा टेबल टेनिस प्रतियोगता में हिस्सा लेने आए हैं। व्हीलचेयर और एक सहयोगी के बगैर वे कुछ नहीं कर पाते। यहां तक की रैकेट भी पकड़ नहीं पाते, उसे भी सहयोगी उनके हाथ पर बांधता है, मगर फिर भी वे डटे हुए हैं, अपने जैसे बाकी खिलाड़ियों को चुनौती दे रहे हैं।

  • 05 वां नेशनल पैरा टेबल टेनिस टूनार्मेंट इंदौर में
  • 22 राज्यों के 225 खिलाड़ी शामिल
  • 50 इंटरनेशनल पैरा प्लेयर, 13 विश्व रैंकिंग के
  • 15 से लेकर 65 वर्ष तक के हैं खिलाड़ी

10वीं में बन गए थे एसआई

जिमनास्टिक में बेहतर प्रदर्शन के चलते मयंक को 10वीं कक्षा में ही सीआरपीएफ में नौकरी मिल गई थी। मूलत: प्रयागराज के मयंक को सब इंस्पेक्टर के रूप में पहली नौकरी मिली, खेल की सफलता ने चोट लगने के पहले तक असिस्टेंट कमांडेंट बना दिया। डिसेबल होने के बाद भी मयंक एबल खिलाड़ियों को व्हील चेयर पर बैठे-बैठे ही जिमनास्टिक की ट्रेनिंग भी देते हैं।

नंबर 1 खिलाड़ी दांगी भी

पैरा टेबल टेनिस में देश के नंबर एक खिलाड़ी हरियाणा के संदीप दांगी भी टूनार्मेंट के लिए इंदौर आए हैं। संदीप का भी गर्दन के नीचे का हिस्सा लगभग बेजान है। व्हील चेयर पर ही यह उपलब्धि हासिल की है।

उंगलियों में जान नहीं, रैकेट हाथ में बांध कर संभालते हैं मैदान

1994 से 2010 के बीच जिमनास्टिक की तीन विश्व चैंपियनिशप, तीन काॅमनवेल्थ गेम्स, दो एशियन चैंपियनिशप, दो विश्वकप सहित कई टूनार्मेंट में मयंक सफलता का परचम फहरा चुके थे। चोट के बाद जीत की जिद से 2020 से वापसी की। नेशनल पैरा एथलेटिक्स में भी हिस्सा लिया। पत्नी और दो बेटे उनके हर टूनार्मेंट में साथ होते हैं। हाथों की उंगलियों में जान नहीं है इसलिए हाथों में रैकेट बांधकर खेलते हैं।

बम धमाके में पैर उड़ा, लेकिन जूनून नहीं

सीआरपीएफ के सेंट्रल पैरा स्पोर्ट्स ऑफिसर (दिल्ली) आरके सिंह भी खिलाड़ी के रूप में आए हैं। मई 2011 में झारखंड में नक्सली हमले में बम धमाके से एक पैर उड़ गया। तीन माह इलाज के बाद नौकरी पर लौटे। हार मानकर बैठने के बजाए, युद्ध में अंग गंवा चुके जवानों का मनोबल बढ़ाया। कई मैराथन, लम्बी साइकिलंग, निशानेबाजी जैसी स्पर्धाओं में उतरे। अब पैरा टेबल टेनिस के नेशनल प्लेयर हैं।

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