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डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़कर एथलीट बने श्रीशंकर: 44 साल बाद देश को कॉमनवेल्थ के मेंस लॉन्ग जंप में मेडल दिया, पैरेंट्स भी रहे हैं एथलीट

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2 मिनट पहले

भारत के मुरली श्रीशंकर ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की है। उन्होंने लॉन्ज जंप इवेंट में 8.08 मीटर की छलांग के साथ सिल्वर मेडल जीता है। 44 साल बाद मेंस लॉन्ग जंप इवेंट में किसी भारतीय ने मेडल जीता है। उनसे पहले सुरेश बाबू ने 1978 कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। अब श्रीशंकर का सपना ओलिंपिक में देश के लिए मेडल जीतना है। अगर आप खेल को लेकर उनके जुनून की कहानी सुनेंगे तो आपको भी यकीन हो जाएगा कि केरल का यह 23 साल का लड़का इस सपने को पूरा कर सकता है।

2017 में MBBS एंट्रेंस एग्जाम पास कर लिया था
कई बच्चे ऐसे होते हैं जो खेल में भी अच्छे होते हैं और पढ़ाई में भी। श्रीशंकर भी इनमें से एक थे। उनके माता-पिता दोनों खिलाड़ी रहे हैं लिहाजा खेल को लेकर नैसर्गिक टैलेंट हमेशा उनके पास रहा। लेकिन, वे साथ ही पढ़ाई में भी बेहतरीन थे और 2017 में उन्होंने MBBS का एंट्रेंस एग्जाम पास भी कर लिया। अब बस एडमिशन लेने की देर थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। श्रीशंकर ने घरवालों से खेल में करियर बनाने की बात शेयर की। यह मुश्किल फैसला था लेकिन घर से उऩ्हें इसकी इजाजात मिल गई। लेकिन, एक शर्त के साथ। शर्त यह थी कि… खेलो लेकिन साथ में इंजीनियर बन जाओ। डॉक्टरी से सीधा इंजीनियरिंग। श्रीशंकर बायोलॉजी के साथ-साथ मैथ्स में भी बेहतरीन थे। उन्होंने इंजीनियरिंग का एंट्रेंस भी क्लियर किया और इस बार एडमिशन भी ले लिया।

मुरली श्रीशंकर के माता-पिता भी साउथ एशियन गेम्स में देश के लिए मेडल जीत चुके हैं।

मुरली श्रीशंकर के माता-पिता भी साउथ एशियन गेम्स में देश के लिए मेडल जीत चुके हैं।

बाद में इंजीनियरिंग भी छोड़ दी
शंकर ने दैनिक भास्कर को कुछ दिन पहले दिए इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने इंजीनियरिंग में एडमिशन तो ले लिया, लेकिन इस वजह से वे खेल पर फोकस नहीं कर पा रहे थे। वे कोशिश करते थे कि दिन में ट्रेनिंग करें और रात में पढ़ाई। कुछ दिन ऐसा चला लेकिन इसे सस्टेन कर पाना मुश्किल हो रहा था। फिर उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई को भी छोड़ने का फैसला कर लिया।

टीचर ने जताई थी आपत्ति
शंकर ने भास्कर को बताया था कि उनके मेडिकल में एडमिशन न लेने के फैसले पर टीचर ने आपत्ति जताई थी। उनका मानना था कि शंकर को MBBS कर लेनी चाहिए। क्योंकि हर कोई इस एग्जाम को क्लीयर नहीं कर पाता है, लेकिन वह खेल के साथ इसे जारी नहीं रख सकते थे।

श्रीशंकर लॉन्ग जंप में CWG में मेडल जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी हैं। उनके पहले 1978 में सुरेश बाबू ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था।

श्रीशंकर लॉन्ग जंप में CWG में मेडल जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी हैं। उनके पहले 1978 में सुरेश बाबू ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था।

मम्मी-पापा दोनों स्पोर्ट्समैन
मुरली शंकर के मम्मी-पापा दोनों स्पोर्ट्सपर्सन हैं। पिता एस. मुरली इंटरनेशनल ट्रिपल जंपर रहे हैं। वहीं, मां केएस बिजमोल 800 मीटर की रनर रही हैं। वे दोनों साउथ एशियन गेम्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। घर के अन्य सदस्य भी स्पोर्ट्स में भाग लेते थे। शंकर भी बचपन में अपने मम्मी-पापा के साथ ग्राउंड जाते थे। धीरे-धीरे उनका इंटरनेस्ट एथलेटिक्स की ओर बढ़ गया। शुरुआत में उन्होंने स्प्रिंट इवेंट में भाग लिया।

पापा के कहने पर स्प्रिंटर से लॉन्ग जंपर बने
श्रीशंकर चौथी क्लास में थे तो 100 और 50 मीटर में स्टेट लेवल पर मेडल जीता था, लेकिन दसवीं क्लास में आने के बाद पापा के कहने पर लॉन्ग-जंप करने लगे। उनके पापा का मानना था कि उनका जंप काफी बेहतर है। बचपन में उनके पापा ने जंप इसलिए नहीं करने दिया कि उन्हें डर था कहीं वह चोटिल न हो जाएं।

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