धोनी हमें जीना सिखाते हैं: ऐसा एक्सिडेंटल कैप्टन जिसने टीम इंडिया को हर एक्सीडेंट से बचाया; 3 वर्ल्ड टाइटल जीते, टेस्ट में देश को बनाया नंबर-1
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मुंबई30 मिनट पहले
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टेस्ट टीम की कप्तानी छोड़े सात साल बीत गए। वनडे और टी-20 में देश की कप्तानी छोड़े पांच साल हो गए। रिटायरमेंट लिए तीन साल हो गए। फिर भी हर भारतीय क्रिकेट प्रेमी उसे याद करता है और दुआ करता है कि भारत के पास फिर से उसी के जैसा कप्तान हो। बात महेंद्र सिंह धोनी की हो रही है। वे आज 41 साल के हो गए हैं।
इंटरनेशनल क्रिकेट में भारत के 90 साल के इतिहास में धोनी सबसे कामयाब कप्तान माने जाते हैं। टी-20 वर्ल्ड कप, वनडे वर्ल्ड कप और चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब जीतने के अलावा धोनी पहले ऐसे भारतीय कप्तान बने थे जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में देश को नंबर-1 बनाया था।
धोनी ने ऐसी कामयाबी महज संयोग या किस्मत के भरोसे हासिल नहीं की। इसके पीछे उनकी वर्षों की मेहनत, कभी हार न मानने की जिद और सही समय पर सही फैसले करने की क्षमता जैसी कई खूबियां शामिल रहीं। धोनी ने जिन तरीकों से क्रिकेट को जिया वे तरीके हमें जीवन जीना सिखा सकते हैं। उनके फलसफे हमें अपना लक्ष्य हासिल करने में मददगार हो सकते हैं।
चलिए जानते हैं धोनी के पांच ऐसे ही कूल फंडे…
1. मौका कभी भी मिल सकता है तैयार रहो
2007 में भारतीय टीम वनडे वर्ल्ड कप के पहले राउंड से ही बाहर हो गई थी। इस वर्ल्ड कप के 5 महीने बाद ही पहली बार टी-20 वर्ल्ड कप खेला जाना था। सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली ने इस टूर्नामेंट से किनारा कर लिया। खुद BCCI भी टी-20 फॉर्मेट को लेकर खास उत्साहित नहीं थी। आनन-फानन में धोनी को कप्तानी दे दी गई।
बोर्ड से जुड़े कई सदस्य यह बताते हैं कि BCCI को इस भारतीय टीम से इस टूर्नामेंट के लिए बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं थी। टीम हार जाती तो इसके बाद फिर किसी सीनियर को कप्तान बना दिया जाता, लेकिन, धोनी को यह मंजूर नहीं था। अचानक हाथ आए इस मौके को उन्होंने जाया नहीं होने दिया। युवा टीम के साथ टीम को चैंपियन बना दिया। पूरे टूर्नामेंट में कभी नहीं लगा कि धोनी इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं थे।
2. प्रोसेस सबसे अहम है, रिजल्ट खुद ब खुद मिलेंगे
2009 में आमिर खान की फिल्म आई थी थ्री इडियट्स। इसका डायलॉग था कि काबिल बनो..कामयाबी झख मारकर पीछे आएगी। धोनी इससे भी एक कदम आगे थे। उनका कहना था काम करने के तरीके पर फोकस करो, रिजल्ट खुद मिलेंगे। यानी प्रोसेस ही सब कुछ है। धोनी की टीम हमेशा एक प्रोसेस में होती थी। बैटिंग बेहतर करना, फील्डिंग पर जोर देना, बाहर के शोर पर ध्यान न देना। नतीजा क्या मिला यह तो हम सब जानते हैं।
3. अंत तक हार मत मानो
धोनी अपने जमाने में दुनिया के बेस्ट फिनिशर माने जाते थे। स्थिति कितनी भी खराब क्यों न हो वो आखिर तक फाइट करने में यकीन रखते थे और हमने कई बार देखा कि उनकी फाइटिंग स्पिरिट के आगे अक्सर प्रतिद्वंद्वी खेमा हौसला छोड़ देता था। तभी तो धोनी को फौलादी इरादों वाला खिलाड़ी कहा जाता था।
4. हार का मतलब THE END नहीं
धोनी टीम को जीत दिलाने के लिए भरसक कोशिश करते थे लेकिन अगर टीम हार जाती तो भी वे बहुत ज्यादा निराश नहीं होते थे। न तो वे जीत मिलने पर ज्यादा उत्तेजित होते थे और न ही हारने पर ज्यादा निराश। हार उनके लिए स्टोरी का THE END नहीं होता था। फिर वे अगला मैच, अगली सीरीज, अगले टूर्नामेंट पर फोकस करते थे।
बेटी जीवा के साथ फार्म हाउस में राइड करते धोनी।
5. लाइफ को एंजॉय करो
कहा जाता है कि भारत में प्रधानमंत्री के बाद सबसे ज्यादा स्ट्रेसफुल जॉब भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान होना होता है। हमने कई कप्तानों को इस स्ट्रेस से गुजरते देखा और इससे उनके हाव-भाव में बदलाव भी देखा। धोनी के साथ ऐसा नहीं था। जब वे क्रिकेट खेलते तो पूरी शिद्दत से खेलते और जब क्रिकेट से ब्रेक मिलता तो लाइफ भी पूरी शिद्दत से जीते थे। कभी बाइक उठाकर लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाते, तो कभी आर्मी कैंप पहुंच जाते। उनके नजदीकी बताते हैं कि धोनी ग्राउंड के बाहर बातचीत में क्रिकेट का जिक्र न के बराबर करते थे।
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