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नहीं रहे फ्लाइंग सिख: मिल्खा सिंह का 91 साल की उम्र में कोरोना से निधन, 5 दिन पहले पत्नी नहीं रही थीं

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चंडीगढ़एक मिनट पहले

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मिल्खा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे। - Dainik Bhaskar

मिल्खा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे।

पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह का कोरोना की वजह से निधन हो गया है। वे 91 साल के थे। 5 दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हो गया। मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ के PGIMER में इलाज चल रहा था।

20 मई को कोरोना संक्रमित हुए थे मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह और उनकी पत्नी 20 मई को कोरोना संक्रमित पाए गए थे। 24 मई को दोनों को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 30 मई को परिवार के लोगों के आग्रह पर उनकी वहां से छुट्टी करवा ली गई थी और कुछ दिनों पहले ही वे घर लौटे थे। तब से उनका घर पर ही इलाज चल रहा था। 3 जून को हालत फिर से खराब होने पर उन्हें PGIMER अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। वहीं, निर्मल कौर का इलाज मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में चल रहा था।

निर्मल कौर भारतीय वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकीं
निर्मल कौर का पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हो गया। वे 85 साल की थीं। निर्मल भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकी थीं। साथ ही वे पंजाब सरकार में स्पोर्ट्स डायरेक्टर (महिलाओं के लिए) के पद पर भी रही थीं। मिल्खा सिंह के परिवार की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि निर्मल कौर का निधन रविवार शाम 4.00 बजे हुआ। बयान में आगे कहा गया है कि ICU में भर्ती होने के कारण मिल्खा सिंह पत्नी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके।

ये हैं मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह ट्रैक एंड फील्ड स्प्रिंटर रहे हैं। अपने करियर में उन्होंने कई रिकॉर्ड बनाए और कई पदक जीते। मेलबर्न में 1956 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया, रोम में 1960 के ओलिंपिक और टोक्यो में 1964 के ओलिंपिक में मिल्खा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे।

20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में एक सिख परिवार में जन्मे मिल्खा सिंह को खेल से बहुत लगाव था। विभाजन के बाद वह भारत भाग आ गए और भारतीय सेना में शामिल हो गए थे। सेना में रहते हुए ही उन्होंने अपने कौशल को और निखारा। एक क्रॉस-कंट्री दौड़ में 400 से अधिक सैनिकों के साथ दौड़ने के बाद छठे स्थान पर आने वाले मिल्खा सिंह को आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना गया और यहीं से उनके प्रभावशाली करियर की नींव रखी गई।

1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलिंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार कोशिश की थी। भले ही उनका अनुभव अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर फलदायक साबित हुआ। 200 मीटर और 400 मीटर की स्पर्धाओं में भाग लेने वाले अनुभवहीन मिल्खा सिंह की चैंपियन चार्ल्स जेनकिंस के साथ एक मुलाकात ने भविष्य के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा और ज्ञान दे दिया।

मिल्खा सिंह ने जल्द ही अपने ओलिंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया।1958 में उन्होंने जबरदस्त एथलेटिक्स कौशल प्रदर्शित किया, जब उन्होंने कटक में नेशनल गेम्स ऑफ इंडिया में अपने 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए।

मिल्खा सिंह ने राष्ट्रीय खेलों के अलावा, टोक्यो में आयोजित 1958 एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर की स्पर्धाओं में और 1958 के ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मी (440 गज की दूरी पर) में स्वर्ण पदक जीते हैं। उनकी अभूतपूर्व सफलता के कारण उन्हें उसी पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

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