नेशनल जेवलिन खिलाड़ी का फेफड़ा खराब, इलाज को पैसे नहीं: 30 साल कोच रहीं, अब टीबी से पीड़ित, ट्रीटमेंट को हर-महीने 5 हजार चाहिए
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नई दिल्ली44 मिनट पहलेलेखक: संजय सिन्हा
टोक्यो ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में पदक जीता तो सबकी जुबां पर उनका नाम आया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जेवलिन में नीरज के चमकने से कई दशक पहले झारखंड की जेवलिन की खिलाड़ी मारिया गोरती खलखो भी हुईं जिनका पूरा जीवन इस खेल के प्रति समर्पित रहा। लेकिन आज बदहाली का जीवन जी रही हैं।
मारिया गोरती खलखो नेशनल रिकार्ड होल्डर हैं । 30 साल तक वह जेवलिन थ्रो टीम की कोच रहीं। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी उनके कोचिंग से निकले। लेकिन आज वह गंभीर रूप से बीमार हैं। पिछले तीन सालों से टीबी से पीड़ित हैं। उनके पास दवा के भी पैसे नहीं हैं। वह बिस्तर पर ही कराहती रहती हैं। कई बार सरकार और अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन मदद के नाम पर सिर्फ आश्वासन ही मिला।
कुछ माह पहले खेल विभाग की ओर से मिली थी 25 हजार की मदद।
रांची में रहती हैं मारिया
राष्ट्रीय स्तर के कबड्डी के खिलाड़ी प्रवीण कुमार सिंह बताते हैं कि मारिया मूल रूप से झारखंड के गुमला जिले के चैनपुुर की रहने वाली हैं। अभी रांची के नामकुम आरा गेट की सीरी बस्ती में अपनी बहन के यहां रहती हैं। बहुत कम उम्र से ही उन्होंने भाला फेंकना शुरू किया।
देश को दिए कई खिलाड़ी
70-80 के दशक में उन्होंने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया। इनमें मेडल जीते। फिर बाद में कोचिंग में लंबा समय दिया। 1988 से 2018 तक लगातार 30 वर्षों तक लातेहार के महुआटांड में जेवलिन थ्रो की कोच रहीं।
प्रवीण बताते हैं कि मारिया ने ही महुआटांड को जेवलिन थ्रो के कोचिंग हब के रूप में बदला। उन्होंने देश को कई खिलाड़ी दिए हैं। चार साल पहले तक वो प्रशिक्षण दे रहीं थीं। लेकिन रिटायर होने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति बदहाल हो गई।
पेंशन तक नहीं मिली
मारिया गोरती खलखो की उम्र 63 वर्ष है। उन्हें संयुक्त बिहार के समय ही जेवलिन थ्रो कोच के तौर पर कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया था। लेकिन झारखंड के अलग होने के बाद उन्हें स्थायी नहीं किया गया। उन्हें पेंशन तक नहीं मिलती। जबकि झारखंड की खेल नीति में है कि राष्ट्रीय खिलाड़ियों को हर माह पेंशन दी जाएगी।
ट्वीट के बाद मदद की जगी उम्मीद
मारिया को मदद दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर भी ट्वीट किए गए। इसके बाद खेल निदेशालय की ओर से मारिया को मदद देने का आश्वासन दिया गया है।
बीमारी से एक फेफड़ा सड़ चुका है
मारिया टीबी की मरीज रही हैं। बीमारी से उनका एक फेफड़ा खराब हो चुका है। हर माह उनकी दवा के लिए पांच हजार रुपए से अधिक जरूरत होती है। काफी गुहार लगाने के बाद उन्हें एक लाख रुपए देने का सरकारी आश्वासन मिला था, लेकिन दिया नहीं गया। इसके काफी समय बाद उन्हें खेल विभाग की ओर से 25 हजार रुपए मिले थे।
इलाज के लिए लिया कर्ज
मारिया कहती हैं इलाज के लिए इतने पैसे काफी नहीं हैं। उनकी बहन भी गरीब हैं। सरकार पेंशन दे तो उनकी स्थिति सुधर सकती है। इलाज के लिए उन्होंने एक लाख का कर्ज भी लिया है। पैसे नहीं होने से कर्ज भी नहीं चुका पा रही हैं।
रांची जिला एथलेटिक्स संघ के सचिव प्रवाकर कहते हैं संघ की ओर से मारिया को 10 हजार रुपए की मदद दी गई थी। सरकार की ओर से भी मदद करने की बात कही गई है।
सुनील गावस्कर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी गोपाल भेंगरा को हर माह भेजते थे पैसे
हॉकी के ही अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे गोपाल भेंगरा। वे झारखंड के खूंटी जिले के तोरपा के रहनेवाले थे। हाल में उनका निधन हो गया था। निधन से पहले तक सुनीव गावस्कर हर माह उन्हें 15 हजार रुपये भेजते थे ताकि सही से गुजर-बसर हो सके। 21 सालों तक सुनील गावस्कर उनकी मदद करते रहे।
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