बिना कोच लॉन बॉल्स टीम ने कॉमनवेल्थ में जीता गोल्ड: अवॉर्ड के पैसों से अगले टूर की फंडिंग, धोनी भी इस खेल के हैं शौकीन
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नई दिल्ली3 मिनट पहलेलेखक: संजय सिन्हा
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कॉमनवेल्थ गेम्स में लॉन बॉल्स में भारतीय खिलाड़ियों ने गोल्ड मेडल जीतकर सबको चौंका दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं जिस टीम ने यह उपलब्धि हासिल की है, वह बिना कोच के ही बर्मिंघम गई है। इन खिलाड़ियों को किसी चैंपियनशिप के लिए खुद ही फंडिंग करनी पड़ती है। उन्हें अवॉर्ड में जो पैसे मिलते हैं उन्हीं पैसों से वो अगला टूर्नामेंट खेलने के लिए विदेश जाती हैं। दिलचस्प यह है कि लॉन बॉल्स फेडेरेशन को भारत सरकार से मान्यता ही नहीं दी है।
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लॉन बॉल्स की विजेता भारतीय टीम की खिलाड़ी रूपा रानी तिर्की ने फोन पर बताया कि टीम बिना कोच के ही कॉमनवेल्थ खेलने गई है। कोच नहीं होने से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कई बार खिलाड़ियों को पता नहीं चलता कि ग्राउंड पर क्या करना है, रणनीति कब बदलनी है या कहीं कुछ गलती तो नहीं कर रहे।
पर्सनल लीव पर बर्मिंघम गईं हैं खिलाड़ी
बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ खेलने गई खिलाड़ी लवली चौबे और रूपा रानी तिर्की को कॉमनवेल्थ गेम्स खेलने के लिए छुट्टी नहीं मिली। लवली चौबे झारखंड पुलिस में कांस्टेबल हैं। उन्हें छुट्टी नहीं मिल रही थी। बाद में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हस्तक्षेप के बाद उन्हें छुट्टी मिली। वहीं रूपा रानी तिर्की रामगढ़ में जिला खेल पदाधिकारी हैं। रूपा ने बर्मिंघम से फोन पर बताया कि कॉमनवेल्थ के लिए उन्हें छुट्टी नहीं मिली। उन्हें आशंका है कि कहीं उनकी सैलरी न कट जाए।
लॉन बॉल्स के फाइनल में भारत ने साउथ अफ्रीका को हराकर गोल्ड मेडल जीता। किसी कॉमनवेल्थ गेम्स में लॉन बॉल्स में भारत का यह पहला पदक है।
इन खिलाड़ियों को 2010 से 2018 तक मधुकांत पाठक ने प्रशिक्षण दिया है। मधुकांत नेशनल एथलेटिक्स फेडेरेशन के ट्रेजरर और झारखंड एथलेटिक्स फेडेरेशन के अध्यक्ष हैं। वह बताते हैं कि झारखंड में लॉन बॉल्स के खिलाड़ियों को खेलने के लिए छुट्टी नहीं मिलती। हालांकि दूसरे खेल जैसे फुटबॉल, हॉकी, आर्चरी आदि खेलों में स्पेशल प्रिविलेज मिलता है। दूसरे राज्यों में लॉन बॉल्स गेम में लीव विथ पे की व्यवस्था है।
झारखंड सरकार के खेल विभाग के सचिव अमिताभ कौशल बताते हैं कि इस संबंध में नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत है। कोई खिलाड़ी जिला खेल पदाधिकारी के तौर पर तैनात है तो उसकी अनुपस्थिति में जिले के खेल से जुड़ी गतिविधियों में बाधा पहुंच सकती है। ऐसे में विभाग की ओर से इस पर फैसला लिया जाएगा।
कॉमनवेल्थ में जीत के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने जश्न मनाया था।
विदेशों में चैंपियनशिप खेलने के लिए खिलाड़ी खुद ही जुटाते हैं पैसे
लॉन बॉल्स के खिलाड़ी चैंपियनशिप में खेलने और टूर के लिए सभी संसाधन खुद ही जुटाते हैं। हालांकि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए खिलाड़ियों को भेजने और टूर पर सभी संसाधन सरकार की ओर से मुहैया कराए गए हैं। लेकिन इस खेल से जुड़ी दूसरी चैंपियनशिप में खिलाड़ियों को खुद से सभी साधन जुटाने पड़ते हैं। विजेता टीम की सदस्य लवली चौबे ने बर्मिंघम से फोन पर बताया कि कॉमनवेल्थ गेम्स को छोड़ दें तो एशियन या एशिया पैसिफिक चैंपियनशिप में खुद के पैसों से ही टूर की फंडिंग करते हैं। अवॉर्ड में जो पैसे मिलते हैं उन पैसों से ही टूर की फंडिंग की जाती है।
मधुकांत पाठक ने बताया कि न तो फेडेरेशन से और न ही सरकार की ओर से फंड उपलब्ध कराया जाता है। खिलाड़ी अपने पैसों से ही सारा इंतजाम करते हैं। कई बार स्थानीय स्तर पर कोई संस्था या सांसद से अनुरोध कर इन खिलाड़ियों के विदेश जाने के लिए पैसे जुटाए जाते हैं।
बर्मिंघम में भारतीय खिलाड़ी।
टीम गोल्ड मेडल भी ले आई, अब नीति बनाने की तैयारी हो रही
किसी खिलाड़ी को इंटरनेशनल या नेशनल चैंपियनशिप में जीतने पर अवॉर्ड में कितनी राशि मिलती है, इस सवाल पर झारखंड सरकार में खेल सचिव अमिताभ कौशल बताते हैं कि चार महीने पहले ही राज्य सरकार ने नई खेल नीति बनाई है। इसके तहत किसी टूर्नामेंट में प्रदर्शन के आधार पर खिलाड़ियों को राशि दी जाती है। नई नीति के तहत राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतने पर खिलाड़ी को 10 लाख रुपए मिलते हैं। जबकि एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने पर 7 लाख रुपए की राशि मिलती है। इसी तरह से कई दूसरी इंटरनेशनल चैंपियनशिप के लिए सम्मान राशि दी जाती है।
क्या एशियन चैंपियनशिप के लिए खिलाड़ियों को सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं, इस सवाल पर अमिताभ कौशल कहते हैं चूंकि यह नया गेम है। गेम के लिए क्या इंफ्रास्ट्रक्चर है, खिलाड़ियों के लिए क्या सुविधाएंं मिलनी चाहिए, इस पर जल्द ही फैसला लिया जाएगा।
एमएस धोनी ने कई बार रांची के आरके आनंद लॉन बॉल्स स्टेडियम जाकर खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाया है। तस्वीर उसी स्टेडियम की है जहां धोनी के दाहिनी ओर रूपा रानी तिर्की दिख रहीं हैं।
टीम बने 12 साल से अधिक हो गए, अभी तक नहीं है नेचुरल ग्रास वाला ग्राउंड
2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ से एक साल पहले भारतीय लॉन बॉल्स टीम बनाने की कवायद शुरू हुई थी। भारतीय खिलाड़ियों को ऑस्ट्रेलिया के कोच रिचर्ड गेल ने ट्रेनिंग दी। इसके बाद मधुकांत पाठक ने 2010 से 2018 तक खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया। टीम को बने 12 साल से अधिक हो गए लेकिन देश में अभी भी नेचुरल ग्रास वाला ग्राउंड नहीं है। दिल्ली, असम और झारखंड में जो ग्राउंड है वहां सिंथेटिक ग्रास है। ऐसे में खिलाड़ी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हिसाब से प्रैक्टिस नहीं कर पाते। बॉलिंग फेडेरेशन आफ इंडिया दिल्ली के प्रेसिडेंट डीआर सैनी बताते हैं कि अभी देश में नेचुरल ग्रास ग्राउंड नहीं है। लेकिन इसे बनाने की तैयारी चल रही है। कोलकाता में एक निजी क्लब में लॉन बॉल्स के लिए ग्रास ग्राउंड है लेकिन वहां खिलाड़यों को प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं होती।
पूरे देश में एक ही फेडेरेशन, उसे भी सरकार मान्यता नहीं देती
बॉलिंग फेडेरेशन आफ इंडिया भारत में लॉन बॉल्स की एकमात्र फेडेरेशन है, लेकिन इसे अभी तक सरकार की ओर से मान्यता नहीं मिली है। मधुकांत पाठक बताते हैं कि जब फेडेरेशन को ही मान्यता नहीं है तब खिलाड़ियों को सुविधा कैसे मिल पाएगी। यही कारण है कि इस खेल का अब तक प्रचार-प्रसार नहीं हो सका है। फेडेरेशन की उदासीनता के कारण खिलाड़ियों को परेशानी उठानी पड़ती है। बॉलिंग फेडेरेशन आफ इंडिया दिल्ली के प्रेसिडेंट डीआर सैनी इस सवाल पर कहते हैं कि सरकार से मान्यता दिलाने के लिए हमने लेटर लिखा है। प्रोसेस में है और जल्द ही मान्यता मिल जाएगी।
रांची के आरके आनंद लॉन बॉल्स स्टेडियम में सिंथेटिक मैट लगा है। इसी पर खिलाड़ी प्रैक्टिस करते हैं। देश में नेचुरल ग्रास वाला कोई ग्राउंड नहीं है।
500 रुपए के चंदे से मैट की मेंटेनेंस, अब 7 राज्यों के खिलाड़ी आते हैं रांची
झारखंड की राजधानी रांची के नामकुम में आरके आनंद लॉन बॉल्स स्टेडियम में कई राज्यों के खिलाड़ी प्रैक्टिस करते हैं। यहां असम, मध्यप्रदेश, पंजाब, बिहार, राजस्थान, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय आदि के खिलाड़ी आते हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने वाली भारतीय टीम की सदस्य लवली बताती हैं कि जिस ग्राउंड पर वो प्रैक्टिस करती हैं उसका मेंटेनेंस भी सभी खिलाड़ी मिलकर करती हैं। महीने में 500-500 रुपए चंदा करके वो ग्राउंड की देखरेख करती हैं। सरकार की ओर से किसी तरह की सुविधा नहीं दी जाती।
मधुकांत पाठक बताते हैं कि पूर्व राज्यसभा सांसद आरके आनंद की सहायता से रांची के नामकुम में ये स्टेडियम खुल सका था। यहां खिलाड़ियों को मुफ्त रहने की सुविधा दी जाती है। 30 रुपए में खाने मुहैया कराया जाता है। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर खिलाड़ियों को सुविधाएं नहीं मिलती। न ही खिलाड़ियों को लॉन बॉल्स किट ही मुहैया कराई जाती है।
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