बैडमिंटन में पहला गोल्ड लाने वाले कृष्णा की कहानी, VIDEO: क्रिकेटर बनना चाहते थे कृष्णा, लंबाई कम होने की वजह से छोड़ा, पिता की सलाह पर थामा रैकेट; 3 साल में बने वर्ल्ड चैंपियन
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जयपुर6 मिनट पहलेलेखक: स्मित पालीवाल
टोक्यो पैरालिंपिक में जयपुर के बैडमिंटन खिलाड़ी कृष्णा नागर ने गोल्ड मेडल जीत दुनियाभर में भारत का नाम रोशन कर दिया है। कृष्णा की जीत के बाद जयपुर के प्रतापनगर में उनके घर पर त्योहार सा माहौल है। आम से खास सभी कृष्णा के घर पहुंच उनके परिजनों को बधाई दे रहे हैं। वहीं कृष्णा के जयपुर आने का इंतजार कर रहे हैं। ताकि गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा का स्वागत सत्कार कर सके।
कृष्णा से फोन पर बात करते परिजन।
कृष्णा का जयपुर से लेकर टोक्यो तक का सफर इतना आसान नहीं था। महज 2 साल की उम्र में कृष्णा के परिजनों को उनकी लाइलाज बीमारी का पता चला। इसके बाद कृष्णा की उम्र तो बढ़ रही थी, लेकिन लंबाई नहीं बढ़ रही थी। जिससे कृष्णा भी निराश होने लगे। परिजनों ने कृष्णा का हर मोर्चे पर साथ दिया और उन्हें मोटिवेट किया। उसका ही नतीजा है कि कृष्णा बैडमिंटन शॉर्ट हाइट केटेगरी में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी बने हैं।
एक दूसरे को मिठाई खिला कृष्णा की जीत की बधाई देते परिजन।
कृष्णा ने लोगों के ताने सुन घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था
कृष्णा के पिता सुनील नागर ने बताया कि गोल्ड मेडल जीतने से पहले कृष्णा ने इसके लिए जी तोड़ मेहनत की है। उसने बैडमिंटन के लिए घर-परिवार, यारी-दोस्ती सबकुछ छोड़ दिया और लगातार मेहनत करता रहा। उसी का नतीजा है कि आज उसने यह मुकाम हासिल किया है। उन्होंने बताया कि यह सफर इतना आसान नहीं था। लंबाई कम होने की वजह से कई लोग कृष्णा को ताने देने लगे थे। जिसकी वजह से उसने घर से बाहर निकलना भी बंद कर दिया था। लेकिन परिवार के सदस्यों ने उसे कभी कमतर महसूस नहीं होने दिया और लगातार खेलने के लिए मोटिवेट करते रहे। ताकि वह खुद को सब बच्चों की तरह आम इंसान समझ सके।
बचपन से क्रिकेटर बनना चाहता था कृष्णा।
क्रिकेटर बनना चाहता था कृष्णा
कृष्ण के पिता सुनील नागर ने बताया कि कुछ सालों पहले तक कृष्णा क्रिकेटर बनना चाहता था। लेकिन लंबाई कम होने की वजह से बैटिंग के दौरान हर बॉल बाउंसर की तरह कृष्णा के सर के ऊपर से निकल जाती थी। जिसके बाद उसने क्रिकेट छोड़ वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। इसमें कृष्णा काफी अच्छा डिफेंडर बन गया। लेकिन लंबाई की वजह से उसने वॉलीबॉल भी छोड़ दी। जिसके बाद मैंने उसे बैडमिंटन खेलने की सलाह दी और सवाई मानसिंह स्टेडियम लेकर गया। जहां साल 2017 से उसने बैडमिंटन खेलना स्टार्ट किया।
कृष्णा के घर पर लगी अवॉर्ड की कतार।
दोस्त बन पिता ने की कृष्णा की मदद
कृष्णा के पिता हर दिन सुबह कृष्णा को मोटरसाइकिल से 13 किलोमीटर दूर स्टेडियम छोड़ते थे। जहां वह दिनभर प्रैक्टिस करता और शाम होने के बाद बस में बैठ घर आता था। इस दौरान कृष्णा हर दिन अपने खेल में सुधार लाता गया और कई प्रतियोगिताओं में मेडल भी जीते। जिसके बाद राजस्थान सरकार ने उसे नौकरी से भी नवाजा। वहीं अब पैरालिंपिक में कृष्णा ने गोल्ड मेडल जीत भारत का नाम दुनिया में रोशन कर दिया है।
गोल्ड मेडल जीतने के बाद कृष्णा के घर पर जश्न का माहौल।
भाई के आने के बाद मनाऊंगी राखी
कृष्णा कि बहन ने बताया कि पैरालिंपिक की तैयारियों के कारण भाई पिछले 6 महीने से जयपुर से बाहर था। इस वजह से राखी पर कृष्णा को राखी भी नहीं बांध पाई थी। लेकिन अब भाई ने मेडल जीत लिया है। अब जिस दिन भाई घर आएंगे, उसी दिन राखी बांध राखी का त्योहार मनाऊंगी।
गोल्ड मैडल जीतने के बाद कृष्णा नागर।
परिवार की पहचान बना कृष्णा
कृष्णा के चाचा अनिल ने बताया कि उनके भतीजे की सालों की मेहनत का नतीजा अब दुनिया के सामने आ गया है। अब तक जहां लोग कृष्णा को हमारी वजह से जानते थे। वहीं अब पूरे परिवार की पहचान कृष्णा के नाम से होने लगी है। जो हम सबके लिए गर्व की बात है। मुझे बस अब इंतजार है, अपने भतीजे का। जिस दिन वह जयपुर लौटेगा, उसका ऐसा स्वागत करूंगा कि दुनिया भी देखती रह जाएगी।
जयपुर के कृष्णा ने रचा इतिहास
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