बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियन निखत सभी चुनौतियों के लिए तैयार: बोली- जो भी, जिसकी भी चुनौती मेरे सामने आएगी, उसे पार करते हुए पेरिस ओलिंपिक का टिकट पाना ही एकमात्र लक्ष्य
5 मिनट पहलेलेखक: संजीव गर्ग
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भारत की निखत जरीन ने गुरुवार रात इस्तांबुल में वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने फ्लाईवेट कैटेगरी में थाईलैंड की बॉक्सर को 5-0 से हराया था। निखत वर्ल्ड चैंपियन बनने वाली भारत की पांचवीं महिला बॉक्सर हैं। उन्होंने करिअर में काफी उतार-चढ़ाव देखे। कंधे की चोट से भी जूझना पड़ा। उन्होंने ऐसे समय में बॉक्सिंग की, जब एमसी मेरीकॉम की तूती बोलती थी।
निखत भी उन्हीं की वेट कैटेगरी में हिस्सा लेती थीं, इसलिए जितनी जल्दी उन्हें बॉक्सिंग में आगे बढ़ना था, उतनी जल्दी नहीं बढ़ सकीं। बॉक्सिंग से पहले वे एथलेटिक्स खेलती थीं। उनकी दो बहनें डॉक्टर हैं और छोटी बहन बैडमिंटन खेलती है। भास्कर ने वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद निखत से बात की। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल: पेरिस के लिए आपकाे मेरीकॉम की भी चुनौती मिलेगी, इसे कैसे देखती हैं?
निखत: जो भी, जिसकी भी चुनौती मेरे सामने आएगी, उसे पार करते हुए पेरिस ओलिंपिक का टिकट पाना ही एकमात्र लक्ष्य
निखत एक लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है: कोच भास्कर भट्ट
कोच भास्कर ने कहा, ‘निखत टेक्नीकली और मेंटली बहुत ही स्ट्रॉन्ग है। वह एक लक्ष्य लेकर इस खेल में आगे बढ़ रही है। मुझे पूरी उम्मीद है कि एक दिन वह ओलिंपिक में भी मेडल जीतेगी। हां, इसके लिए निखत को अपनी वेट कैटेगरी बदलनी होगी। अब देखना यह है कि वह ऊपर के वेट में खेलती हैं या फिर नीचे के वेट में। 52 किग्रा वेट कैटेगरी ओलिंपिक में नहीं है।
हम इस वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 4 मुकाबले 3-2 से हारे। छोटी-छोटी गलतियां हमसे हुई, वरना हम 7 मेडल जीतते। इसमें कई गोल्ड भी हो सकते थे। हमारा अगला टारगेट अगले साल होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप होगी।’
11 साल पहले आप यूथ वर्ल्ड चैंपियन बनी थीं और अब सीनियर में वर्ल्ड चैंपियन। कैसा रहा यह सफर?
सफर काफी रोलर कोस्टर राइड की तरह रहा। इस दौरान काफी उतार-चढ़ाव देखे। कंधे की चोट से भी काफी परेशान रही, लेकिन मैंने कभी भी मेहनत करना नहीं छोड़ा।
आप शुरू में एथलेटिक्स में हिस्सा लेती थी। 100-200 मीटर में स्टेट चैंपियन बनीं। बॉक्सिंग में कैसे मूव किया?
एथलेटिक्स में कोच वगैरह नहीं थे तो मुझे पापा से ही ट्रेनिंग लेनी पड़ती थी। एक बार हमारे यहां अर्बन गेम्स हो रहे थे। वहां बॉक्सिंग भी चल रही थी, लेकिन एक भी लड़की उसमें हिस्सा नहीं ले रही थी। तब मैंने पापा से पूछा कि यहां लड़कियां क्यों नहीं खेल रहीं तो उन्होंने कहा, इस गेम में लड़कियां कम ही हिस्सा लेती हैं। तभी सोच लिया था कि अब मुझे इसी गेम में आगे बढ़ना है। मुझे चुनौतियां शुरू से पसंद हैं। लड़के और लड़की में भेद तो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।
आपने जिस वेट कैटेगरी (52 किग्रा) में वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीता, वो कैटेगरी पेरिस ओलिंपिक में नहीं है तो आपका ओलिंपिक में खेलने और मेडल जीतने का सपना कैसे पूरा होगा?
मुझे इस बारे में पता है। फोकस एशियन चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स हैं। इसके बाद अगले साल वर्ल्ड चैंपियनशिप में कैटेगरी बदल कर उतरूंगी। इसके लिए मुझे अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ेगी।
आपको भारत में सबसे ज्यादा चुनौती मेरीकॉम से मिलेगी। वो भी इसी कैटेगरी में खेलती हैं। इसे कैसे देखती हैं?
जो भी और जिसकी भी चुनौती मेरे सामने आएगी, उसे पार करते हुए पेरिस ओलिंपिक का टिकट पाना चाहूंगी और पेरिस में देश के लिए मेडल जीतना ही अब मेरा सपना है।
2017 में आपके कंधे में चोट लगी। इसके बाद कोविड के कारण भी प्रतियोगिताएं नहीं हुईं। इस 3-4 साल में आपने खुद को कैसे तैयार किया?
कंधे की चोट से काफी परेशान थी। ऐसा भी लगा कि अब शायद बॉक्सिंग नहीं कर पाऊंगी। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। यहां तक कि कोविड के समय भी मैं लगातार प्रैक्टिस करती रही।
निखत वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाली 5वीं भारतीय बॉक्सर हैं।
बॉक्सिंग शुरू करते वक्त परिवार का कितना समर्थन रहा?
मां जरूर परेशान थीं। उन्हें डर था कि कहीं मुंह वगैरह पर चोट लग गई, तो मेरी शादी कैसे होगी। फिर बॉक्सिंग में शॉर्ट्स वगैरह भी पहनने पड़ते थे तो लोग बातें करते थे। अब मैं बॉक्सिंग में लगातार अच्छा कर रही हूं तो मां के साथ-साथ अन्य लोगों का भी पूरा सपोर्ट मिलता है।
आपकी दो बहनें डॉक्टर हैं। फिर आपने पढ़ाई में नहीं बल्कि बॉक्सिंग में करिअर बनाया। ऐसा क्यों?
मैं हमेशा से अलग करना चाहती थी। ऐसे खेल में जाना चाहती थी, जहां लड़कों का दबदबा था। मैं इस मिथ को तोड़ना चाहती थी कि लड़कियां बॉक्सिंग नहीं कर सकतीं।
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