भास्कर इंटरव्यू: साक्षी मलिक बोलीं- लड़कियों को भी खेलने दो, उनको भी बराबर का अधिकार है; हर फील्ड में लड़कियां बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं
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नई दिल्ली2 मिनट पहले
लड़कियां अब घर से बाहर निकल रहीं है, लड़कों से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जहां नजर उठाने पर आपकाे लड़कों के बराबर में लड़कियां देखने को न मिलें। ऐसी ही हैं रियो ओलिंपिक की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट पहलवान साक्षी मलिक। हरियाणा के रोहतक जिले की पहलवान 29 साल की साक्षी का कहना है कि लड़कियों को भी खेलने दो, उनको भी बराबर का अधिकार है।
दैनिक भास्कर और माई एफएम नवरात्रि के चौथे दिन साक्षी के जज्बे और जुझारूपन की कहानी आपके सामने लाए हैं…
सवालः आपके खेल से लगाव में सबसे बड़ा योगदान किसका है?
जवाबः बचपन से खेल में रुचि थी। स्कूल में हर स्पोर्ट्स एक्टिविटी में हिस्सा लेती थी। पापा से सुना था कि दादाजी खेल से जुड़े थे। समय के साथ मेरा भी लगाव बढ़ता गया। मैंने भी सोचा कि मैं भी खेल में करियर बना सकती हूं। घर के पास ही स्टेडियम में रेसलिंग हॉल भी था। मम्मी-पापा मुझे लेकर गए। इसके बाद मैंने फैसला किया कि मुझे अब कुश्ती ही करनी है।
सवालः शुरुआती दिनों में आपका पूरा दिन ट्रेनिंग, स्कूल और ट्यूशन में ही निकल जाता था? कैसे मैनेज करती थीं?
जवाबः शुरुआती समय काफी मुश्किल भरा रहा। कई दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। ऐसा तो नहीं है कि आज गेम शुरू किया और पांच महीने बाद मेडल मिल जाएगा। गेम को समझने और उसमें फिट होने के लिए कम से कम तीन-चार साल लग जाते हैं। सुबह चार बजे उठकर ट्रेनिंग करती। फिर आठ किलोमीटर दूर साइकिल से स्कूल जाती। उसके बाद ट्यूशन, फिर ट्रेनिंग करने जाती थी। परिवार से बहुत सपोर्ट मिला, लेकिन रिश्तेदार हमेशा मना करते थे। वे बोलते थे कि यह लड़कों का खेल है। इसके कान टूट जाएंगे। उन बातों को कभी पेरेंट्स ने मुझ पर हावी नहीं होने दिया।
सवालः सुना है कि शुरुआती दिनों में आपने हवाई जहाज में बैठने का लक्ष्य बनाया था। ऐसा क्यों?
जवाबः मुझे सीनियर से पता चला था कि मैं पहले नंबर पर आऊंगी तो मुझे हवाई जहाज से दूसरे देश जाने का मौका मिलेगा। मैं इसे लेकर बहुत एक्साइटेड थी। अब तो विदेश में कई टूर्नामेंट में हिस्सा लेकर मेडल जीत चुकी हूं।
सवालः आप रिंग को मंदिर और प्रैक्टिस को पूजा मानती हैं, ऐसा क्यों?
जवाबः मैंने आपको पहले ही बताया कि मेरा लक्ष्य हवाई जहाज में बैठकर दूसरे देश जाना था, लेकिन समय के साथ-साथ मेरा रेसलिंग से लगाव बढ़ गया था। मुझे लगता था कि रिंग मेरा मंदिर है और मैं मंदिर ही जा रही हूं। रिंग में जितने देर प्रैक्टिस करती थी, वह मेरी पूजा ही थी।
सवालः कोच की किस बात से आपको मोटिवेशन मिलती थी?
जवाबः मैंने 2004 में कुश्ती शुरू की थी और 2008 में मेडल आया। कोच शुरू से ही कहते थे कि तुझमें मुझे ओलिंपिक मेडल दिखता है। उस समय मुझे ओलिंपिक का पता नहीं था। उन्हाेंने इस बारे में कुछ बताया भी नहीं था। मैंने उनकी बात को पूरा किया। उनकी बात आज भी याद आती है। कभी मैं बाउट हार जाती थी तो भी वे इसी बात को दोहराकर मुझे मोटिवेट करते थे।
सवालः क्या कभी ऐसे लोगों से सामना हुआ, जो आगे बढ़ने से रोकते थे?
जवाबः ऐसे लोगों से मुलाकात हुई है, जो आपके दिमाग में नकारात्मक बातें बैठाने की कोशिश करते हैं, लेकिन मैंने ऐसा होने नहीं दिया। यही कहूंगी कि बाहरी लोगों की नकारात्मक बातों पर ध्यान न दें। उनकी बातों पर कुछ मत साेचिए। आप अपने लक्ष्य को सामने रखकर मेहनत करें।
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