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मेडल विजेता महिला हॉकी प्लेयर्स का इंटरव्यू: रानी रामपाल बोलीं – हाॅकी नहीं खेलती ताे अब तक घर वाले शादी कर देते, कहीं चूल्हा-चाैका संभाल रही हाेती, अब तो हाॅकी ही जीवन है

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भोपाल2 घंटे पहलेलेखक: राम कृष्ण यदुवंशी और कृष्ण कुमार पांडेय

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मध्य प्रदेश सरकार ने भारतीय महिला हॉकी टीम का सम्मान किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टीम के हर सदस्य को 31-31 लाख रुपए का चेक दिया।

भारतीय महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलिंपिक में भले ही सोना नहीं जीता, लेकिन इन मर्दानियों ने इतिहास तो रच ही दिया। टर्फ पर इन शेरनियों को खेलते हुए देख ऐसा लगा ही नहीं कि इनके दिल में संघर्ष और तकलीफों के अफसाने गम की शक्ल में दफन हैं।

हॉकी की खातिर तंग जिंदगी को जिया। माली हालत, ख्वाहिशों को छुपाया। जरूरतों के चलते सब्र भी किया। इन मर्दानियों का भोपाल में सीएम ने मप्र की जनता की ओर से मिंटो हॉल में सम्मान किया। महिला हॉकी टीम की हर सदस्य को 31-31 लाख रुपए दिए गए। पढ़िए इन खिलाड़ियों से भास्कर की खास बातचीत…

रानी रामपाल: अब हर कोई हॉकी खेलना चाहता है

सवाल: जब हॉकी खेलना शुरू किया, तब माली हालत ठीक नहीं थी क्या?

हॉकी मेरा जीवन है। यदि मैं हाॅकी नहीं खेलती ताे निश्चित ही घर वाले शादी कर देते। मैं हाॅकी के बगैर नहीं रह सकती। मैं गरीब परिवार से हूं। माली हालत ठीक नहीं होने से पिता ने काफी संघर्ष किया। जब हाॅकी खेलना शुरू किया तब मेरे पास स्टिक भी नहीं थी।

सवाल: ओलिंपिक के पहले और बाद हाॅकी और रानी में क्या चेंज देखती हैं?

मैं जब ओलिंपिक खेलकर लाैटी ताे शहर में स्वागत हुआ। इसे बयां नहीं कर सकती। यही एक चेंज है। इसका फायदा हमें पेरिस में मिलेगा। अब हर काेई हाॅकी खेलना चाहता है।

सवाल: भाेपाल से महिला हॉकी के लिए काेई चेहरा अभी तक सामने नहीं आ सका, ऐसा क्यों?

भाेपाल से कई बड़े खिलाड़ी निकले हैं। यहां की दाेनाें अकादमियों में अच्छे खिलाड़ी हैं। ग्वालियर अकादमी की कई लड़कियां इंटरनेशनल खेल चुकी हैं और खेल रही हैं।

सवाल: ब्लू जर्सी के अलावा काैनसा परिधान है, जिसे आप पसंद करती हैं?

भारतीय महिलाओं पर साड़ी काफी जंचती है। मैं भी साड़ी व सलवार सूट पसंद करती हूं। (कुरुक्षेत्र के शाहबाद के मरकंडा की रहने वालीं रानी के पिता तांगा तो कभी ईंट बेचकर घर चलाते थे। दो बेटे और एक बेटी सहित 5 लोगों का खर्चा चलाना मुश्किल होता था।)

सुशीला: मां चाय की दुकान लगाती थीं, पिता ट्रक चलाते थे

मणिपुर की सुशीला चानू के पिता ट्रक डाइवर और मां चाय की दुकान चलाती थीं। ओलिंपिक खेलाें में टीम की सफलता के बाद उन्होंने दुकान बंद कर दी। सुशीला ने मप्र महिला हाॅकी अकादमी में दाखिला लिया। सुशीला रियाे ओलिंपिक में भारतीय टीम की कप्तान रह चुकी हैं। सुशीला और रानी की टीम में क्या अंतर है? इस सवाल पर सुशीला कहती हैं- इस टीम में अधिकांश वही खिलाड़ी हैं, जाे मेरी टीम में थीं। अंतर है ताे बस फिटनेस लेवल का, कैप्टन शिप और पॉजिटिव अप्रोच का।

निक्की: पहली बार बांस के बंबू से हाॅकी खेलना शुरू किया

खूंटी के हेसल गांव की रहने वालीं निक्की के पिता रिटायर्ड पुलिसकर्मी हैं। निक्की ने बताया कि उन्होंने अपने हॉकी कॅरियर की शुरुआत गांव के मिडिल स्कूल से की थी। पहली बार हॉकी बांस के बंबू से खेली थीं। शूज के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती थी। निक्की को 2008 में साई से बाहर किया तो उन्होंने स्टेट हॉस्टल ज्वाइन किया। 2011 नेशनल गेम्स कॅरियर का टर्निंग पॉइंट रहा। झारखंड से खेलते हुए उन्होंने उम्दा प्रदर्शन किया तो टीम इंडिया के कैंप में चुना गया।

शिवराज बोले- MP में बनेगा इंटरनेशनल हॉकी स्टेडियम​​​​​​​

प्रदेश में इंटरनेशनल हाॅकी स्टेडियम बनने जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चाैहान ने टाेक्याे से ओलिंपिक खेलकर लाैटी भारतीय महिला हाॅकी टीम के सम्मान समाराेह में स्टेडियम बनाने की बात कही। उन्हाेंने कहा कि हम राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी के लिए प्रपोजल भेजेंगे।

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