वर्ल्डकप जिताने वाली गेंदबाज सोनम की कहानी: बिटिया क्रिकेटर बन सके इसलिए मां ने गांव-गांव दूध बेचा, पिता ने कारखाने में 14 घंटे मजदूरी की
2 घंटे पहलेलेखक: देवांशु तिवारी
फिरोजाबाद से 10 किलोमीटर दूर पड़ता है ‘राजा का ताल’ कस्बा। यूपी में सबसे ज्यादा कांच का सामान बनाने वाले कारखाने यहीं पर हैं। लेकिन अब ये फैक्ट्रियां यहां की पहचान नहीं हैं। इस जगह को पूरी दुनिया में नई पहचान दिलाने वाली एक 15 साल की लड़की है। नाम है…सोनम यादव।
अंडर-19 महिला T20 वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में सोनम ने 1.1 ओवर में 3 रन देकर 1 अहम विकेट चटकाया। ये विकेट गिरते ही महज 68 रन पर ऑलआउट हुई इंग्लैंड टीम मैच में दोबारा वापसी नहीं कर पाई। भारत 7 विकेट से इंग्लैंड को शिकस्त देकर पहली बार विश्व चैम्पियन बना।
सोनम के लिए इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं था। उसे प्रोफेशनल क्रिकेटर बनाने में परिवार ने पूरी जान झोंक दी। पिता ने 2 टाइम मजदूरी की। मां ने दूध बेचकर मिले पैसों से बिटिया की क्रिकेट एकेडमी की फीस भरी। भाई ने अपना करियर छोड़कर बहन का सपना पूरा करवाया।
परिवार के इस संघर्ष को सोनम ने जाया नहीं जाने दिया। उसने वो कर दिखाया, जिसका जश्न आज पूरा देश मना रहा है। दैनिक भास्कर सोनम और उनके परिवार से मिलने फिरोजाबाद पहुंचा। गांव की तंग गलियों से निकलकर उनके क्रिकेटर बनने के सफर को जाना। आइए पूरी कहानी शुरू से जानते हैं…
ये तस्वीर 29 जनवरी 2023 की है जब किराए की TV मंगवाकर सोनम के परिवार ने फाइनल मैच देखा।
20 साल कांच घिसकर 5 बेटियों को पाला, डबल ड्यूटी की
सोनम के परिवार में 8 लोग हैं। मां-पिता, भाई और 5 बहनें। सोनम सबसे छोटी हैं। पिता मुकेश कुमार ओम ग्लास फैक्ट्री में लेबर हैं। सोनम को घर की दहलीज से बाहर निकालकर क्रिकेट खेलने भेजना उनके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था।
मुकेश बताते हैं, “घर की आर्थिक स्थिति न तो पहले अच्छी थी न आज है। 5 बेटियों और 1 बेटे को पढ़ाने के लिए मैं 20 साल से कांच फैक्ट्री में काम कर रहा हूं। 7 घंटे की नौकरी में 300 रुपए मजदूरी मिलती है। सोनम जब क्रिकेट खेलने लगी तब खर्चा भी एकाएक बढ़ गया। उसकी किट के पैसे और टूर्नामेंट में जाने की फीस भरने के लिए मैं कारखाने में 2 शिफ्ट की डबल ड्यूटी करने लगा। बेटी का सपना पूरा हो गया है, इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है।”
मुकेश के मुताबिक, जिस दिन विश्व कप का फाइनल था। उस दिन भी उनके परिवार ने किराए का TV मंगवाकर मैच देखा। घर के बाहर बड़ी LED टीवी लगी और पूरा गांव इकट्ठा हुआ। टीवी पर सोनम को देखते ही लोग ताली बजाते और मैच जीतने के बाद खूब नाच-कूद हुआ।
मां से कहते, ‘खाने के लिए पैसे नहीं बेटी को बाहर खेलने भेज दिया’
बड़ा परिवार चलाने के लिए मुकेश की नौकरी काफी नहीं थी। फैक्ट्री में मजदूरी करते हुए जो पैसे मिलते वो घर खर्च में चले जाते। सोनम खेलती रहे, इसलिए मां गुड्डी देवी ने भी गांव में दूध बेचना शुरू कर दिया। दूध की बिक्री से जो कमाई होती उससे सोनम की क्रिकेट एकेडमी की फीस भरी जाती।
ये सोनम की मां गुड्डी देवी हैं। सोनम इनकी 5 बेटियों में सबसे छोटी हैं।
सोनम के सिर पर हाथ रखकर गुड्डी मुस्कुराते हुए कहती हैं, “सोनम जब बाहर खेलने जाती, तब लोग मुझे ताना मारते थे। कहते- क्रिकेट खेलने में बहुत पैसा लगता है। बड़े-बड़े लोग इतना खर्चा नहीं उठा पाते तो तू कैसे उठा पाएगी। तेरे पास तो 5 बेटियां हैं कहां से लाएगी इतना पैसा? मैं उनसे यही कहती कि मेहनत करूंगी, सोनम के लिए जो भी हो सकता है वो करूंगी।”
“सोनम की प्रैक्टिस के साथ मैंने भी एक रूटीन पकड़ ली। खेलते वक्त उसे कमजोरी न हो इसलिए मैं उसे रोज 2 लीटर दूध जरूर देती थी। जब वो विदेश खेलने गई, मैं तब भी रोज पूछती कि बेटा आज दूध पिया कि नहीं। टीवी पर जब उसे दौड़ते देखती तो मुझे यही दिन याद आते थें।” 2 फरवरी को जब सोनम घर लौटी तो गुड्डी देवी ने उसे मनपसंद खीर बनाकर खिलाई।
बहन के लिए पढ़ाई छोड़ कांच के थर्मस बनाने लगा
सोनम के भाई अमन यादव फिरोजाबाद में GM ग्लास कंपनी में काम करते हैं। नौकरी से पहले वो भी लोकल लेवल पर क्रिकेट खेलते थे। लेकिन ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद वो भी ग्लास फैक्ट्री में काम करने लगे ताकि सोनम का खर्चा उठा सके।
अमन कहते हैं, “सोनम जब 9 साल की थी तब मेरे साथ क्रिकेट खेलने जाती थी। नेट्स में उसे लड़कों का विकेट लेता देख हमारे कोच रवि यादव काफी इंप्रेस हुए। उन्होंने सोनम की ट्रेनिंग शुरू की। उसे लोकल और स्टेट लेवल टूर्नामेंट में भी भेजा। उसका प्रदर्शन देख डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एकेडमी के सचिव शिवकांत शर्मा ने उनका नाम यूपी की महिला टीम के लिए भेज दिया। सोनम को बड़ा चांस तब मिला जब 11 साल की उम्र में उसे यूपी की टीम से खेलने का मौका मिला।”
राजा का ताल कस्बे की क्रिकेट एकेडमी में प्रैक्टिस करती सोनम।
U19 विश्व कप में खेलने से पहले सोनम ने बीसीसीआई के कई टूर्नामेंट खेले। मुंबई में न्यूजीलैंड के खिलाफ 5 मैच में शानदार प्रदर्शन की बदौलत उसका चयन विश्व कप की टीम में हो गया। फिर, 29 दिसंबर 2022 से 4 जनवरी 2023 तक साउथ अफ्रीका अंडर-19 महिला टीम के साथ सोनम ने अभ्यास मैच खेले। विश्व कप में खेले गए 6 मैचों में सोनम ने 5 विकेट लिए।
कोच के कहने पर बनी बॉलिंग ऑलराउंडर
सोनम अपनी सफलता का श्रेय गांव की क्रिकेट एकेडमी के कोच रवि यादव को देती हैं। रवि ने ही उनके असली टैलेंट को पहचाना और उन्हें लेफ्ट आर्म स्पिन गेंदबाज बनने की सलाह दी थी।
कोच रवि ने बताया, “सोनम ने जब एकेडमी ज्वाइंन की तब वो 9 साल की थी। शुरुआत में वह बैट्समैन बनना चाहती थी लेकिन फुटवर्क कमजोर होने के कारण सोनम सफल नहीं हो सकीं। हालांकि, गेंदबाजी में वह लगातार अच्छा परफॉर्म कर रही थी। ये देख मैंने उसे गेंदबाजी पर फोकल करने की सलाह दी। उसके लिए फिरोजाबाद डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एकेडमी में स्पेशल बॉलिंग सेशन रखवाएं। इसका फायदा मिला और सोनम रेगुलर लेफ्ट आर्म स्पिन बॉलर बन गईं।”
जब लगा कि हम चैंपियन नहीं बन पाएंगे…
सोनम कहती हैं, “ऑस्ट्रेलिया से जब टीम हार गई, तब लगा था कि हम कहीं टूर्नामेंट से बाहर न हो जाए। हमारे प्वाइंट्स कम थे इसलिए सेमीफाइनल में पहुंचना मुश्किल लग रहा था। लेकिन इसके बाद श्रीलंका से हुए मैच में हमने दमदार खेल दिखाया। जिसकी बदौलत टीम सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई हो गई। श्रीलंका से हुए मैच में मैंने 3 ओवर में सिर्फ 7 रन दिए थे।”
फाइनल में आखिरी विकेट लेकर इंग्लैंड की कमर तोड़ दी
दिसंबर 2022 में वर्ल्ड कप टीम में सिलेक्ट हुईं सोनम फाइनल से पहले 5 मैचों में 4 विकेट ले चुकी थीं। इकोनॉमी 5 रन प्रति ओवर के आस-पास थी। फाइनल मैच में इंग्लैंड के 68 रन के स्कोर पर 9 विकेट गिर गए थे। कप्तान शेफाली वर्मा ने उन्हें 17वां ओवर थमाया। सोनम ने ओवर की पहली ही गेंद पर कमाल कर दिया।
17वें ओवर की पहली गेंद पर सोनम ने 11 रन पर खेल रही आक्रामक बल्लेबाज सोफिया को CnB यानी अपनी गेंद पर खुद कैचआउट कर दिया। टीम जश्न में डूब गई। इंग्लैंड की पूरी पारी महज 68 रनों पर ढेर हो गई। इस विकेट के साथ सोनम के खाते में 6 मैचों में 5 विकेट हो गए।
अंडर-19 महिला T20 वर्ल्ड कप में गेंदबाजी करती सोनम यादव। भारतीय टीम के ऑलराउंडर रविंद्र जडेजा और राधा यादव उनके फेवरेट क्रिकेटर्स हैं।
जीत के बाद घर लौटी सोनम बोली, अब WPL के लिए तैयार हूं
U19 विश्वकप जीतकर सोनम 2 फरवरी को फिरोजाबाद लौटी। पूरे शहर में रोड शो हुआ। इस दौरान उनका गांव ढोल नगाड़ों के साथ ‘सोनम जिंदाबाद’ और ‘भारत माता की जय’ के नारों से गूंज उठा। अब तक जिस लड़की का नाम भी लोगों को नहीं पता था। उससे ऑटोग्राफ लेने के लिए लोग दूर-दूर से उसके घर पहुंच रहे थे। लोगों के बीच सोनम का क्रेज इतना ज्यादा है कि वह जहां रहती हैं उस खादी आश्रम वाली गली का नाम बदलकर ‘सोनम वाली गली’ रख दिया गया है।
सोनम को घर लौटे 6 दिन बीत चुके हैं। परिवार में खुशी का माहौल है, लेकिन सोनम 2 बातों को लेकर काफी सीरियस हैं। पहली:16 फरवरी से शुरू होने वाली 10वीं की बोर्ड परीक्षा। दूसरी:13 फरवरी को होने वाला WPL यानी वूमेन प्रीमियर लीग का ऑक्शन।
सोनम कहती हैं, “मुझे यकीन है कि विश्वकप में मेरा प्रदर्शन देखकर WPL में मुझे जरूर चुना जाएगा। मैं भी टूर्नामेंट को लेकर काफी उत्साहित हूं और इसके लिए पूरी तरह से तैयार हूं।”
ये तो थी क्रिकेटर सोनम यादव की कहानी। इसके अलावा यूपी की पार्श्वी चोपड़ा, अर्चना देवी और फलक नाज ने भी भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई। फलक का भी अंडर 19 वर्ल्ड कप की 15 सदस्यों की टीम के लिए चयन हुआ था। लेकिन उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला।
अर्चना देवी: गांव वाले मां को डायन बोलते थे, कहते-पति-बेटे को निगल गई
उन्नाव की अर्चना देवी 18 साल की हैं। टीम इंडिया में वो गेंदबाज हैं। अर्चना 3 साल की थीं, तब उनके पिता शिवराम की कैंसर से मौत हो गई। अर्चना की मां बताती हैं कि उस वक्त हमारे परिवार का गांव में रहना भी मुश्किल हो गया था। मैं गाय का दूध बेचकर और खेती कर सभी बच्चों को अकेले पाल रही थी। गांव वाले आते-जाते हमको ताने देते थे। हमें डायन कहते थे।
उनका कहना था कि मैं पहले अपने पति को खा गई, फिर अपने बेटे को। मैं गांव में कहीं जाती, तो लोग हमको देखकर रास्ता बदल लेते। हमारे घर को डायन का घर कहते थे। अर्चना ने टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में तीन ओवर में 17 रन देकर दो विकेट हासिल किए। जिससे खेल का रुख ही बदल गया।
पार्श्वी चोपड़ा: बॉल गीली कर प्रैक्टिस की; नतीजा-वर्ल्ड कप में 11 विकेट झटके
बुलंदशहर की पार्श्वी चोपड़ा 16 साल की हैं। टीम इंडिया में वो लेग स्पिनर हैं। पूरे टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 11 विकेट पार्श्वी ने ही लिए। पार्श्वी की जीत पर उसके दादा परशुराम भावुक हो गए। दरअसल पार्श्वी के दादा जोनल के लिए खेल चुके हैं।
उसके पिता और चाचा क्लब क्रिकेट खेल चुके हैं। दादा को उम्मीद थी कि जो उनके बेटे नहीं कर पाए वो एक दिन उनकी पोती करके दिखाएगी। भारत की जीत के बाद उसके पूरे परिवार को उस पर नाज है।
फलक नाज: लोग ताने मारते थे- चूड़ियों वाले हाथ क्या क्रिकेट खेलेंगे
प्रयागराज के बलुआ घाट की रहने वाली फलक के पिता नासीर राजू इंटर कॉलेज में चपरासी हैं और मां जीनत बानो हाउस वाइफ। क्रिकेट की दुनिया से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। लेकिन, जिद, जुनून और जज्बे की बदौलत 18 साल की फलक ने क्रिकेट के फलक पर अपना नाम लिखा दिया। फलक नाज तेज गेंदबाजी के लिए पहचानी जाती हैं।
वह 110-115 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से गेंद फेंकती हैं। हालांकि, बल्ले पर भी फलक की पकड़ बेहतर है। वर्ल्ड कप-19 के अनुभवों को शेयर करते हुए फलक नाज ने कहा कि मैंने अपने साथी खिलाड़ियों से बहुत कुछ सीखा। बड़े मैच में प्रेशर को हैंडल करना भी सीखने को मिला।
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