Site icon News Update

संघर्ष की कहानी: झारखंड टीम में नक्सली इलाकों की 2 फुटबॉलर; एक की मां मजदूर हैं, दूसरी प्राइज मनी से स्कूल फीस भरती हैं

संघर्ष की कहानी: झारखंड टीम में नक्सली इलाकों की 2 फुटबॉलर; एक की मां मजदूर हैं, दूसरी प्राइज मनी से स्कूल फीस भरती हैं
  • Hindi News
  • Sports
  • Khelo India Youth Games 2022; Jharkhand Footballer’s Success Story, 2 Players From Naxalite Areas In Jharkhand Football Team

चंडीगढ़15 मिनट पहलेलेखक: गौरव मारवाह

  • कॉपी लिंक
संघर्ष की कहानी: झारखंड टीम में नक्सली इलाकों की 2 फुटबॉलर; एक की मां मजदूर हैं, दूसरी प्राइज मनी से स्कूल फीस भरती हैं

खेलो इंडिया के गर्ल्स फुटबॉल में झारखंड की टीम ने फाइनल में जगह बनाई। खिताबी मुकाबले में आंध्रप्रदेश के हाथों जरूर झारखंड को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन टीम की खिलाड़ियों का संघर्ष जरूर जीत गया। इनमें गोलकीपर अनीषा और शिवानी टोप्पो ने टीम को फाइनल तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया। कोच गोपाल टिर्की मानते हैं कि वे अपने संघर्ष की बदौलत ही इस लेवल पर पंहुची हैं और वे भारतीय टीम के लिए जरूर खेलेंगी।

मां चाहती हैं कि मैं पढ़ाई करूं और खेलूं : अनीषा
14 साल की अनीषा टीम की गोलकीपर हैं। वे झारखंड के लोहरदगा के बगरू गांव की रहने वाली हैं, जिसे नक्सली इलाका माना जाता है। काफी साल पहले खेत में काम करते समय उनके पिता का देहांत हो गया। मां मजदूरी करती हैं और बेटी को गांव से दूर रखना चाहती हैं। अनीषा ने कहा, ‘मां ने मुझे बड़ी मां के घर भेज दिया है। वे चाहती हैं कि मैं पढ़ाई करूं और गेम खेलूं। मैं सुबह और शाम को 2-2 घंटे ट्रेनिंग करती हूं ताकि गेम में सुधार हो। मेरी एक ही ख्वाइश है कि मां को अच्छी जिंदगी दे सकूं।’

मां मुझे बस स्टॉप तक छोड़ने 5 किमी पैदल आती थीं : शिवानी
16 साल की शिवानी 10वीं की स्टूडेंट हैं। वे झारखंड के गुमला जिले के अनाबिरी की रहने वाली हैं। इस इलाके को भी नक्सल प्रभावित माना जाता है। उन्हें गांव से आने-जाने के लिए बमुश्किल साधन मिल पाता है। शिवानी कहती हैं, ‘गांव से आना आसान नहीं है। रास्ता मुश्किल है और माहौल खतरनाक। मां हमेशा मुझे गाड़ी या बस तक चढ़ाने आती हैं। वे मेरे साथ 5 किलोमीटर पैदल आती हैं और फिर वापस जाती हैं। उनका मकसद यही है कि मैं अच्छा खेलूं, मुझे सिर्फ उनके लिए कुछ करना है। मुझे जो कैश अवॉर्ड मिलता है मैं उससे अपने स्कूल की फीस भरती हूं।’

रिया के माता-पिता 800 सीढ़ी उतरकर लकड़ी बेचने जाते थे
बबीता को परिवार के साथ रोजाना 800 सीढ़ी उतरकर लकड़ी बेचने जाना पड़ता है, ताकि परिवार खाने के लिए पैसा जुटा सके। सभी खिलाड़ियों ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ा संघर्ष किया है।’ कोच ने कहा, ‘हमारी टीम की खिलाड़ियों का जीवन काफी संघर्ष से भरा रहा है। रिया के माता-पिता दूसरों के घर पर खाना बनाते हैं। रिया प्राइज मनी से अपना खर्च चलाती हैं।

खबरें और भी हैं…

For all the latest Sports News Click Here 

 For the latest news and updates, follow us on Google News

Read original article here

Denial of responsibility! NewsUpdate is an automatic aggregator around the global media. All the content are available free on Internet. We have just arranged it in one platform for educational purpose only. In each content, the hyperlink to the primary source is specified. All trademarks belong to their rightful owners, all materials to their authors. If you are the owner of the content and do not want us to publish your materials on our website, please contact us by email – abuse@newsupdate.uk. The content will be deleted within 24 hours.
Exit mobile version