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सरहदी गांव से आई ड्रैग फ्लिकर गुरजीत की कहानी: छठीं कक्षा में मां-बाप को छोड़कर हॉकी को बनाया साथी, 11 साल की उम्र में छोड़ दिया घर

सरहदी गांव से आई ड्रैग फ्लिकर गुरजीत की कहानी: छठीं कक्षा में मां-बाप को छोड़कर हॉकी को बनाया साथी, 11 साल की उम्र में छोड़ दिया घर

अमृतसर40 मिनट पहले

ओलिंपिक 2021 में इतिहास रचने के बाद भारत महिला हॉकी टीम ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया। कॉमनवेल्थ खेलों में हॉकी मैच के दौरान पंजाब की गुरजीत कौर का नाम हर मैच में लिया गया। लेकिन पंजाब के अमृतसर में अजनाला के गांव मियादीया कलां की साधारण लड़की से ड्रैग फ्लिकर गुरजीत कौर बनने का सफर आसान नहीं था।

11 साल की उम्र में छोड़ा घर

देश के 11 साल के बच्चे महज हॉकी पकड़ना सीखते हैं लेकिन गुरजीत 11 साल की थी, जब उसने अपना घर छोड़ दिया। परिवार ने उसे तरनतारन के कैरों गांव की सरकारी खेल एकेडमी को जॉइन करने के लिए भेज दिया। क्लास 6वीं से यहां हॉस्टल में रहना शुरू किया और 6 साल तक माता-पिता से दूर रहकर कोच चरणजीत सिंह से हॉकी की बारीकियां सीखीं और +2 तक यहीं रहीं। गुरजीत गांव में अपने घर पर मां-बाप से मिलने नहीं जा पाती थीं क्योंकि पैसे और संसाधनों की कमी थी।

गुरजीत कौर के दादा और पिता कबड्‌डी प्लेयर

गुरजीत के पिता सतनाम सिंह और मां हरजिंदर का कहना है कि सरहदी गांव से निकलकर बेटी इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर बनी। अफसोस यह है कि जब उसने खेलना शुरू किया तो गांव में खेल स्टेडियम नहीं था। अच्छे स्कूल भी नहीं थे। पिता सतनाम सिंह गुरजीत और उसकी बहन प्रदीप कौर को रोज गांव से 12 किलोमीटर दूर स्कूल लेकर जाते थे। इतना ही नहीं, रोज दोपहर तपती धूप में साइकिल पर लेने भी जाते थे। वहीं, इनके दादा मखन सिंह 1960 में कबड्‌डी खेलते थे। वह खुद भी 1985 में कबड्‌डी खेलते थे।

मेहनत ने गांव के ग्राउंड से मेडल तक पहुंचाया

अजनाला के बॉर्डर एरिया के गांव मियादीया कलां में किसान सतनाम सिंह के यहां 25 अक्टूबर 1995 में को जन्मी गुरजीत कौर 3 भाई बहन हैं। बड़ी बहन प्रदीप कौर हॉकी की नेशनल प्लेयर और कोच भी हैं। भाई कबड्डी खेलता है। गुरजीत के पिता की इच्छा थी कि बेटियां अच्छी शिक्षा के साथ हॉकी में विश्वभर में अपनी अलग पहचान बनाएं।

मेडल जीतने के बाद गुरजीत कौर का परिवार एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हुए।

बेहतर शिक्षा के लिए सुंदर मॉडल स्कूल में एडमिशन दिलाया। वहीं घर की माली हालत होने के कारण पिता 12 किलोमीटर दूर साइकिल से छोड़ने के लिए जाते थे और स्कूल की छुट्टी होने तक वहीं इंतजार करते थे। 2006 में अमृतसर से 70 किमी दूर तरनतारन के कैरों गांव में 6वीं क्लास में हॉस्टल में पढ़ाई के लिए भेजने का निर्णय लिया। कैरों गांव में महिला हॉकी नर्सरी में एक है। यहां बड़ी बहन प्रदीप कौर के साथ हॉकी खेलना शुरू किया। दोनों ही बहनों के कोच शरणजीत सिंह थे जिनके संरक्षण में हॉकी सीखा।

गुरजीत कौर की उपलब्धियां

  • ओलिंपिक्स 2022 में हॉकी में भारत को सेमिफाइनल में पहुंचा इतिहास रचा
  • 17 की उम्र में 2012 में भारतीय महिला जूनियर हॉकी में चयन।
  • 2014 में सीनियर महिला हॉकी टीम में चयन।
  • 2017 में सीनियर नेशनल कैंप में खेली।
  • एकमात्र खिलाड़ी हैं जो 2017 में हॉकी टीम की स्थायी सदस्य बनी।
  • मार्च 2017 में कनाडा में टेस्ट सीरीज खेली। अप्रैल में हॉकी वर्ल्ड लीग राउंड-2 और जुलाई में हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में प्रतिनिधित्व किया।
  • जकार्ता के एशियन खेल 2018 में गोलकर भारत को 20 साल बाद हॉकी के फाइनल में पहुंचाया। इंडिया ने सिल्वर मेडल जीता था।
  • एशियन, कॉमनवेल्थ, लंदन वर्ल्डकप में अच्छा प्रदर्शन।
  • हाल ही में पंजाब सरकार ने महाराजा रणजीत सिंह अवार्ड से नवाजा।
  • गुरजीत कौर इलाहाबाद रेलवे में क्लर्क की नौकरी करती हैं। परिवार की इच्छा है कि गुरजीत को पंजाब पुलिस में डीएसपी का पद दिया जाए।
  • गुरजीत ने ड्रैग फ्लिक स्किल को बेहतर करने के लिए हॉलैंड के कोच टून स्पीमन के साथ भी काम किया।

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