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भास्कर के लिए सचिन तेंदुलकर: ‘भारत को खेल-प्रेमी राष्ट्र से खेलने वाले राष्ट्र में बदलना होगा, खेलने की आजादी बेहद महत्वपूर्ण’

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मुंबई18 मिनट पहले

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2011 वर्ल्ड कप जीतने के बाद सचिन तेंदुलकर जश्न मनाते हुए।

दुनियाभर के भारतीयों के लिए आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण है। हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ का जश्न मना रहे हैं। यह स्वतंत्रता के बारे में सोचने का सही समय है कि हम सभी के लिए इसके क्या मायने हैं। पिछले दो साल में इंसान के अस्तित्व का ताना-बाना प्रभावित हुआ है। कोविड-19 ने हम सभी को घरों में कैद होने के लिए मजबूर कर दिया।

सभी ने महसूस किया कि कैसे हमने छोटी चीजों को हल्के में लिया जैसे अपनी मर्जी से घूमने और स्वतंत्र रूप से सांस लेने की आजादी। शायद इसलिए, जब पिछले साल खेल फिर से शुरू हुए और इस साल टोक्यो में आखिरकार ओलिंपिक हो गया, तो हम सभी को मुक्ति की अनुभूति हुई। यह देखकर अच्छा लगा कि लोग फिर से बाहर निकलने लगे हैं।

किसी चीज को खोने के बाद उसकी महत्ता का अहसास
दुर्भाग्य से मानवीय प्रवृत्ति ऐसी रही है कि किसी चीज के खोने के बाद ही उसकी महत्ता का अहसास होता है। हम में से अधिकांश लोग अपनी सेहत को हल्के में लेते हैं। भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है, लेकिन सबसे फिट देशों में शामिल नहीं है। यह खेल संस्कृति की कमी को दर्शाता है।

हालांकि, यह देखकर खुशी हुई कि ओलिंपिक के दौरान लोग सुबह जल्दी जागकर भारतीय खिलाड़ियों के इवेंट्स देखा करते थे। यह वास्तव में उल्लेखनीय होगा कि लोग खेल के लिए प्रेरित हों और खेलने के लिए एक खेल चुनें। हम एक खेल-प्रेमी देश रहे हैं, लेकिन हमें खेलने वाले देश में बदलने की जरूरत है।

खेल फिजिकल एक्टिवटी के साथ चरित्र निर्माण भी करता है
महामारी की वजह से स्कूल बंद करने पड़े, तब गरीब बच्चों की पढ़ाई छूट गई। बच्चे वर्चुअल तरीके से पढ़ाई करने लगे। लेकिन उस दौरान खेल को लेकर ऐसी किसी तरह की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बनाई गई क्योंकि हम खेल को आज भी पढ़ाई की तरह आवश्यक नहीं मानते। खेल सिर्फ फिजिकल एक्टिवटी नहीं है, बल्कि इससे चरित्र का निर्माण होता है, नेतृत्व के गुण विकसित होते हैं, पारस्परिक संबंध मजबूत होते हैं- ये वही तत्व हैं, जो हमें इंसान बनाते हैं।

महामारी की वजह से सभी के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा, विशेषकर बच्चों को। हम अपने मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी नहीं कर सकते। हम अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में खेलों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते।

फिजिकल एजुकेशन का पीरियड एक दिन की बजाय रोजाना हो
जैसे-जैसे स्कूल खुलने लगे हैं, इस बात की चिंता होने लगी है कि एकेडमिक सेशन की भरपाई के लिए फिजिकल एजुकेशन (पीई) के पीरियड्स की तिलांजलि दी जाने लगेगी। हमें खेलों को गंभीरता से लेना शुरू करना होगा। शायद यह सुनिश्चित करने का सही समय है कि फिजिकल एजुकेशन का पीरियड हफ्ते में एक दिन की बजाय रोजाना हो। उम्मीद है कि ऐसा करने से बच्चों का अन्य विषयों में भी प्रदर्शन सुधरेगा।

मुझे आशा है कि मेडल जीतने वाले ओलिंपियंस बच्चों को खेल चुनने के लिए प्रेरित करेंगे। यह उल्लेखनीय बात होगी, जब खेल हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण जगह बना लेगा। अगर बच्चे खेल चुनते हैं तो वे सभी खिलाड़ी नहीं बन सकते, लेकिन वे निश्चित रूप से स्वस्थ इंजीनियर, डॉक्टर्स, वकील आदि बनेंगे।

अपने राष्ट्र के स्वास्थ्य के प्रति हम सभी की जिम्मेदारी है
हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को शारीरिक रूप से कैसे सक्रिय रखें। ‘खेलने की आजादी’ उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी ‘शिक्षा का अधिकार’। हमारे 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, आइए हम संकल्प लें- भारत को एक खेल-प्रेमी राष्ट्र से खेलने वाले राष्ट्र में बदलने का। अपने राष्ट्र के स्वास्थ्य के प्रति हम सभी की जिम्मेदारी है। जय हिंद!

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