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बजरंग पुनिया आज ब्रॉन्ज के लिए लगाएंगे दांव: पिता बोले- आज तक खाली हाथ नहीं लौटा बेटा, कांस्य पदक जरूर आएगा, घुटने की चोट ने परेशान किया है उसे

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पानीपत28 मिनट पहले

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बजरंग पूनिया के पिता का कहना है कि एक महीना पहले बजरंग के घुटने में चोट लग गई थी, फिर भी वह सेमीफाइनल तक पहुंचा।

टोक्यो ओलिंपिक में गोल्ड मेडल से चूकने के बाद भारत के स्टार रेसलर बजरंग पुनिया आज ब्रॉन्ज मेडल के लिए खेलेंगे। दोपहर 3:15 बजे मुकाबला शुरू होगा। क्वार्टर फाइनल में शानदार शुरूआत करने के बाद बजरंग सेमीफाइनल मुकाबला हार गए थे।

चोट के कारण बजरंग को परेशानी हुई
लेकिन उनके पिता का कहना है कि बेटा आज तक कभी खाली हाथ नहीं लौटा है। पूरे देश की दुआएं उसके साथ हैं। एक महीना पहले उसके घुटने में चोट लग गई थी, फिर भी वह सेमीफाइनल तक पहुंचा। चोट की वजह से वह अटैकिंग नहीं खेल पाया।

अजरबैजान के एथलीट से हारे थे सेमीफाइनल
सेमीफाइनल मुकाबलते में तीन बार के वर्ल्ड चैंपियन अजरबैजान के पहलवान हाजी एलियेव ने उन्हें 12-5 के अंतर से हराया था। इससे पहले हुए क्वार्टर फाइनल मुकाबले में बजरंग पूनिया ने ईरान के पहलवान को 2-1 से मात देकर 65 किलोग्राम भार वर्ग में हराया था।

बजरंग के पिता बदलाव सिंह (बायें) व अन्य परिजन।

बजरंग के पिता बदलाव सिंह (बायें) व अन्य परिजन।

नंबर वन रह चुके हैं पुनिया
बजरंग पुनिया किसी भी श्रेणी में दुनिया के नंबर 1 पहलवान बनने वाले पहले भारतीय हैं। इसके अलावा दो विश्व चैंपियनशिप पदक और प्रसिद्ध जर्मन लीग में कुश्ती करने वाले भी पहले भारतीय हैं। हरियाणा के झज्जर जिले के साधारण परिवार से आने वाले बजरंग पुनिया के पास शुरुआत में क्रिकेट और बैडमिंटन के सामान खरीदने के पैसे नहीं होते थे। उस समय बच्चे कबड्डी और रेसलिंग में बहुत रूचि रखते थे और पुनिया के गांव में इसका प्रचलन था। हालांकि उनके पिता बलवान सिंह भी रेसलर थे और युवा बजरंग उनकी कुश्ती देखने के लिए स्कूल तक छोड़ देते थे। बजरंग ने कहा भी था कि मुझे नहीं पता कि कब कुश्ती मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई।्र

बजरंग पूनिया का जन्म 26 फरवरी 1994 को हरियाणा के झाझर गांव में हुआ। इनके पिता का नाम बलवान सिंह पुनिया है। इनके पिता एक पेशेवर पहलवान हैं। इनकी माता का नाम ओम प्यारी हैं। इनके भाई का नाम हरिंदर पुनिया है। बजरंग को कुश्ती विरासत में मिली। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। बजरंग की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही पूरी हुई। बजरंग ने 7 साल की उम्र में कुश्ती शुरू की और उन्हें उनके पिता का बहुत सहयोग मिला। बजरंग ने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक से ग्रेजुएशन की। पूनिया ने भारतीय रेलवे में टिकट चेकर (TTE) का भी काम किया।

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