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पिता ने पूनम यादव को भैंसें बेचकर बनाया वेटलिफ्टर: 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को दिलाया था गोल्ड, अबकी बार ब्रॉन्ज भी नहीं जीत सकी

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बर्मिंघम3 मिनट पहले

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पिता ने पूनम यादव को भैंसें बेचकर बनाया वेटलिफ्टर: 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को दिलाया था गोल्ड, अबकी बार ब्रॉन्ज भी नहीं जीत सकी

भारतीय वेटलिफ्टर पूनम यादव विमेंस 76KG वेट कैटेगरी में मेडल जीतने से चूक गईं। उन्होंने स्नैच में 98 KG वेट उठाया। लेकिन, क्लीन एंड जर्क के तीन प्रयास में वे एक बार भी 116 KG वेट नहीं उठा पाईं। पूनम 2018 कॉ़मनवेल्थ गेम्स की गोल्ड मेडलिस्ट थीं और इस बार भी उनसे सोने के तमगे की उम्मीद थी।

पूनम के पिता कैलाश यादव किसान हैं। घर की स्थिति खराब थी। वे 6 भाई-भाई बहन हैं। बचपन में भूखे रहने की नौबत थी। उसके बाद भी पिता ने कर्णम मल्लेश्वरी के ओलिंपिक ब्रॉन्ज से प्रेरित होकर अपनी बेटी को वेटलिफ्टर बनाया, ताकि बेटी देश के लिए मेडल जीत सके। उन्होंने इस सपने के लिए अपनी भैंसें तक बेच दीं। यही उनका रोजगार था। इतना ही नहीं उन्होंने करीबियों से 7 लाख का कर्ज भी लिया था।

2018 कॉमनवेल्थ में ऐसा रहा था प्रदर्शन
कॉमनवेल्थ गेम 2018 में पूनम यादव ने गोल्ड मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया था। पूनम ने 69 Kg वेट कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता था। पूनम ने पहले प्रयास में 95 Kg, दूसरे में 98Kg और तीसरी कोशिश में 100Kg वजन उठाया था। इस दौरान उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 122Kg रहा था। इस तरह उन्होंने कुल 222 किग्रा वजन उठाकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। 22 साल की पूनम यादव ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 में 63 Kg वेट कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता था।

भूखे रहकर भी पूरे किए ख्वाब
पूनम की फैमिली वाराणसी के दांदुपुर में रहती है। मां उर्मिला के अनुसार उनकी बेटी ने काफी स्ट्रगल किया। मां कहती हैं कि हम वो पल नहीं भूल सकते, जब कई बार हमें भूखे भी रहना पड़ा। हालात तो ऐसे थे कि पूनम के खेलने पर लोग ताने मारते थे, आज वही सलाम करते हैं। पूनम ने साल 2011 में प्रैक्टिस शुरू की।

समाजसेवी ने प्रति माह दिए थे 20 हजार रुपए
गरीबी के कारण पूनम को खेल के लिए जरूरी डाइट नहीं मिल पाती थी। तब स्थानीय समाजसेवी सतीश फौजी ने परिवार को बेटी के भविष्य की उड़ान की खातिर 20 हजार रुपए प्रति माह देना शुरू किया। ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लेने के लिए पैसे नहीं थे तो पूनम के पिता ने 7 लाख रुपए उधार लिए और भैंसों को बेच दिया। 2014 के ग्लास्गो कॉमनवेल्थ में बिटिया के ब्रॉन्ज जीतने पर परिवार के पास मिठाई तक बांटने के पैसे नहीं थे। इसके बाद पिता ने फिर से पैसे उधार लिए और सबको मिठाई खिलाई।

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